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________________ सूरसागर में निरूपित "राग-तत्त्व" को ही लिया जाय तो आज के युग में इसका सर्वाधिक महत्त्व है। आज जो मानवीय सम्बन्धों का चरमराता तन्त्र है, उसे सूरसागर रागात्मक सम्बन्धों का अद्भुत उपहार प्रदान करता है। सूरसागर में दाम्पत्य, प्रणय, सख्य, वात्सल्य, दास्य तथा विनय प्रेरित सम्बन्धों का एक पूरा संसार ब्रज से मथुरा तक फैला हुआ है। यशोदा-नन्दन, बलराम, राधा, गोपियाँ तथा प्रजाजन आदि इसके इर्द-गिर्द गतिशील हैं। एक तरफ विशुद्ध भारतीय ग्रामीण परिवेश ब्रज है तथा दूसरी तरफ नागरिक सभ्यता के अभिशाप रूप मथुरा। श्री कृष्ण अपनी शुद्ध ग्रामीण संस्कृति को पहुँचाने के लिए ही ब्रज से मथुरा जाते हैं। वे वहाँ राजनैतिक छल-कपट से जूझने में भी पूर्णतया सफल सिद्ध होते हैं। सूरसागर में प्रेम का चरमोत्कर्ष वर्णन भी उपलब्ध होता है। यह प्रेम समर्पण तथा तादात्म्य के आधार पर टिका हुआ है, इसमें कहीं भी वासना की दुर्गन्ध नहीं आती। आज के परिवेश में इसी निष्कलंक प्रेम की आवश्यकता है। सूरसागर का लौकिक-काम नर-नारी के मिलन में भी आत्मा-परमात्मा के मिलन की सम्भावनाएँ व्यक्त करता है। इससे ज्यादा और क्या ऊँचाई हो सकती है? सूरसागर में निरूपित कृष्ण पूर्णतः आनन्द सौन्दर्य के प्रतीक हैं, उनसे सभी प्रेम करते हैं; गोपियाँ भी, राधा भी, ब्रज भी, गोप भी, वृन्दावन भी परन्तु कहीं पर परस्पर ईर्ष्या या अलगाव की भावना नहीं है। श्री कृष्ण विराट स्वरूप में समस्त चराचर जगत को आलोकित करते दिखाई देते हैं, जो सबको एक समान अपनी अस्मिता को प्रदान कर रहे हैं। प्रेम का ऐसा सुन्दर समर्पित स्वरूप अन्यत्र दुर्लभ है। - सूरसागर के भावपक्ष में मानवीय भावनाओं के सहज चित्रणों में कवि को पूर्ण सफलता मिली है। केवल प्रणय में ही नहीं वरन् वात्सल्य अंकन में भी यह कृति सफल रही है। यशोदा कृष्ण की जननी नहीं है परन्तु वह जननी से कई गुना ज्यादा लाड़ प्यार व ममता प्रदान करती है। वात्सल्य के अनेक पदों में इस उदात्त भावना के दर्शन होते हैं। वह वर्णन बाल मनोवैज्ञानिक आधारों पर चित्रित है। यह कृति प्रणय तथा वात्सल्य जैसे मानवीय सम्बन्धों में उदात्त भावना को खोजकर प्रदान करती है, जिसे आज के मानव ने खो दिया है। मुक्तिकामी परलोकोन्मुखी समाज के लिए ईश्वर हमेशा एकमात्र आशा का सेतु रहा है। सूरसागर में इसी मुक्ति कामना की प्रवृत्ति को विविध प्रसंगों में उजागर किया है। भगवान् इसी जगत में विभिन्न रूपों में विद्यमान है, मानव के हर क्षेत्र का साक्षी है, इसका संदेश आज के पतनोन्मुखी समाज को सूरसागर प्रदान करता है, जो सद्मार्ग तथा सदाचार के अनुसरण पर आधारित है। इतना ही नहीं महाकवि सूर ने अपनी रचना में भारतीय सांस्कृतिक विचारों का भी निरूपण किया है, जिसे आज जानना जरूरी है। सूरसागर में उल्लेखित सामाजिक -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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