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________________ देव - मतिराम - आयौ है सयानपन गयौ है अजानपन, . तोहूं उठि मान करि बै की टेक पकरी। घर घर मानिनी है, मानती मनाए ते है, तेरी ऐसी रीति और काहू मैं न पकरी॥ हाहा कै निहोरे हूँ न हेरति हरित नैनी, काहे को करित हठ, हारिल की लकरी॥ मतिराम ने इस पद में सूर के उपमान "हारिल की लकरी" का ही प्रयोग नहीं किया है वरन् पकरी, जकरी शब्दों का भी चतुराई से काम लिया है। देव :-कविवर देव की रचनाओं पर सूरसागर का प्रभाव प्रचुर मात्रा में है। रासलीला, संयोग-लीला, उद्धव-यात्रा आदि में सूरसागर के पदों की छाया है। इनका अभिव्यंजना कौशल भी सूरसागर पर आधारित है। इनका एक पद उदाहरणार्थ देखिये हरि दरसन को तरसति अँखियाँ झाँकति झखति झरोखा बैठी कर मीड़ति ज्यों मखियाँ।६१ बिछुरी वदन सुधा निधिरस ते लगति नहीं पल पंखियाँ। देव कछु अपनी बस ना रस, लालच लाल चितै भई चेरी। बेगि ही बूडि गई पंखियाँ, अंखियाँ मधु की मखियाँ भई।६२ / घन आनन्द :-रीतिमुक्त कवि घनानन्द की पद रचना पर भी सूरसागर का प्रभाव पर्याप्त मात्रा में है। ये श्रेष्ठ संगीतज्ञ थे। सूर की भाँति इन्होंने राग तथा भाव का सुन्दर सामंजस्य अपने पदों में किया है। उनकी कविता में ब्रज भाषा का जो सहज माधुर्य मिलता है, उसके प्रेरक भी सूर ही थे। नृत्य वर्णन के एक पद में सूरसागर का साम्य देखियेसूरसागर - होड़ा होड़ी नृत्य करै, रीझि रीझि अंक भरै। * ताता थई-थई उघटत हरषि मन।६३ घनानन्द - रास मण्डल में नाचत दोऊत, कट धिकट घिधिकट घिलांग थेई थेई तत थे। आनन्द घन रस रंग पपीहा रीझि रीझि आंको भरिलेई।६४ आधुनिक कालीन काव्य :-आधुनिक कालीन काव्य भी सूर के प्रभाव से अछूता नहीं है। आधुनिक काल के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अनेक दृष्टियों से सूर काव्य से प्रभावित हैं। वे भी वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित थे तथा सूर की भाँति संगीतज्ञ थे अतः उनके काव्य में सूरसागर का प्रभाव स्वाभाविक है। उनके काव्य में सूर का प्रभाव देखियेसूरसागर - छोटी छोटी गाड़ियाँ, अंगुरियाँ छवीली छोटी। नख ज्योति मोती मानो कमल दलनि पर॥५
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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