________________ देखौ माई मानौ कसौटी कसी। कनक वेलि वृषभानु नंदिनी, गिरिधर डर जु बसी। स्याम तमाल कलेवर सुंदर, अंग अंग मालती घुसी॥ इस पद में सूर की चंचलता त्याग कर सौदामिनी का पल भर में सुशोभित होने की कल्पना को को कवि ने विकृत बनाकर उसे कनक वेली तथा "तमाल में माली घुसा" कहा है। गोविन्द स्वामी :-श्रीनाथजी की सेवा में पद रचना करने के क्रम में संगीतज्ञ गोविन्दस्वामी का सूर से प्रभावित होना स्वाभाविक है। सूरसागर की पद रचना, भाषा अलंकार इत्यादि का इन्होंने अनुसरण किया है। उदाहरणार्थ देखिये वदन कमल ऊपर बैठरी, मानो जुगल खंजरी। ता उपर मानो मीन-चपल, अरु ता पर अलिकावलि गुंजरी॥९ इस पद में नयनों की उपमा खंजन तथा चपल मीन से कर कवि ने सूरसागर के उपमानों का अनुसरण किया है। नन्ददास :-इन्होंने सूरदास के भ्रमरगीत से प्रेरणा लेकर "भंवरगीत" की रचना की। इनके अनेक पद सूरदास की शैली पर रचित हैं। साम्यता पर आधारिक एक पद द्रष्टव्य हैसूरदास - आजु तो बधाई बाजे मंदिर महर के। फूले फिरे गोपी ग्वाल ठहर-ठहर के। फूली फिरे धेनु धाम, फली गोपी अंग-अंग। फूले फले तरवर आनन्द लहर के।" नन्ददास- माई आजु तो गोकुल गाँव कैसो रह्यो फूलि के। घर फूले दीखै सब जैसे संपति समूलि कै। फूली-फूली घटा आई, घहरि घहरि घूमि के। फूली फूली बरखा होति, झर लावति झूमि के।५१ छीतस्वामी एवं चतुर्भुजदास :-ये अष्टछाप के सातवें एवं आठवें कवि हैं। इनका कोई काव्य ग्रन्थ नहीं मिलता परन्तु जो स्फुट पद प्राप्त हैं, उनमें सूरसागर का प्रभाव दिखाई देता है। उदाहरणार्थ एक पद देखिये जिसमें सूरसागर का अनुसरण है घननन घन घटा घोर, झननन झालर झकोर। तननन तन थई थई, करत है एक दाई। तननन तन तान जान, राग रंग स्वर बंधान। गोपा जन गावै गीत, मंगल बधाई॥५२