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________________ समाचार लाए कि, उस बालक का नाम प्रद्युम्न रखा है, वह सोलहवें वर्ष अपने मातापिता को पुनः मिलेगा। ___ कालसंवर के वहाँ रहते हुए प्रद्युम्न ने अनेक विद्याएँ सिखीं एवं वह अस्त्रसंचालन में पारंगत हुआ। उधर श्री कृष्ण की पटरानी सत्यभामा का, जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम भानु रखा गया। वह भानु भी प्रात:काल के सूर्य के समान अपनी महिमा से बढ़ने लगा। भामायास्तनुजः श्रीमान् भानुभामण्डलद्युतिः। भानुर्नाम्ना महिम्नासौ ववृधे बालभानुवत्॥ रुक्मिणी का पुत्र प्रद्युम्न कामदेव पद का धारक था। वह अतिशय कुशल तथा शूरवीर था। कालसंवर ने उसे युवराज पद पर अभिषिक्त किया। इससे कालसंवर के अन्य पुत्रों ने प्रद्युम्न को मारने का प्रयास किया परन्तु वे इस काम में सफल न हो सके। एक बार अनेक विजयों को प्राप्त कर वह कनकमाला के यहाँ गया। कनकमाला उसके रूप पर मोहित हो गई। उसने उसे अपना अभिप्राय सुनाया, परन्तु प्रद्युम्न ने उसे माता तथा पुत्र का सम्बन्ध बताया। तदुपरान्त कनकमाला से उसने अपनी प्राप्ति की बात सुनी परन्तु काममोहित कनकमाला का मनोरथ पूर्ण न करने के कारण कनकमाला ने क्रोधवश कालसंवर को प्रपंच सुनाकर प्रद्युम्न को मारने के लिए कहा। कालसंवर के पाँच सौ पुत्रों ने उसे मारने का प्रयास किया परन्तु प्रद्युम्न ने उन्हें मार गिराया। पुत्रों का समाचार सुन कालसंवर ने प्रद्युम्न से युद्ध किया परन्तु वह भी उससे हार गया। उसी समय नारद मुनि वहाँ आये एवं उन्होंने प्रद्युम्न को उसके जीवन का सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया। ___ तदुपरान्त प्रद्युम्न व नारद मुनि विमान में बैठ द्वारिका की तरफ प्रयाण करने लगे। रास्ते में जाते समय वे दुर्योधन की पुत्री उदधिकुमारी को लेते हुए द्वारिका पहुँचे। पुत्र को देखते ही रुक्मिणी अत्यन्त प्रसन्न हुई। आचार्य जिनसेन के शब्दों में "पुत्र के दर्शनरूपी अमृत से सींची हुई रुक्मिणी के शरीर में प्रत्येक रोमकूप से रोमांच निकल आये। उससे ऐसा जान पड़ता था कि मानों पुत्र का स्नेह ही फूट-फूटकर प्रकट हो रहा हो / 50 तदनन्तर प्रद्युम्न ने शीघ्र ही अपना प्रताप बताने के लिए रुक्मिणी को ऊपर उठा आकाश में खड़ा हो कहने लगा कि, समस्त यादवो ! सुनो, मैं तुम लोगों के देखतेदेखते लक्ष्मी की भाँति सुन्दर श्री कृष्ण की प्रिया रुक्मिणी का हरण कर ले जा रहा हूँ। हे यादवो ! शक्ति हो तो रक्षा करो। इस पर सभी यादव चतुरंग सेना के साथ युद्ध के लिए बाहर निकले। प्रद्युम्न विद्याबल से यादवों की सब सेना को मोहित कर आकाश में स्थित श्री कृष्ण के साथ चिरकाल तक युद्ध करता रहा। उसने श्री कृष्ण के अस्त्र-कौशल को नष्ट कर दिया; तब नारद ने पिता-पुत्र का सम्बन्ध बताकर दोनों वीरों को युद्ध करने से रोका। प्रद्युम्न को पाकर श्री कृष्ण परम हर्ष को प्राप्त हुए।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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