________________ . श्री कृष्ण का आध्यात्मिक राजपुरुष स्वरूप.. हरिवंशपुराण में कृष्ण वासुदेव से युक्त राजपुरुष के रूप में चित्रित हुए हैं परन्तु उनकी समस्त धार्मिक निष्ठा तीर्थंकर अरिष्टनेमि के संदर्भ में निरूपित हुई है। अपने चचेरे भाई अरिष्टनेमि को कृष्ण ने वैराग्य ग्रहण करने के अवसर पर बहत समझाया परन्तु जब यह जान लिया कि अरिष्टनेमि अपने निश्चय पर अटल है, अडिग है तो उन्होंने उन्हें इस सुकार्य में तनिक भी बाधा नहीं पहुंचाई वरन् उनके मदद रूप बने। अपनी तपस्या के आधार पर अरिष्टनेमि ने सिद्धि प्राप्त की। वे लोक में अहंत के रूप में प्रसिद्ध हुए।° उनका धार्मिक नेतृत्व अनेक लोगों ने स्वीकार किया, तब श्री कृष्ण ने कई बार गिरनार पर जाकर उनसे धर्मोपदेश सुनने का लाभ प्राप्त किया। नेमिनाथ ने भी अपने विहार के समय अनेक बार द्वारिका का प्रवास किया। इन प्रसंगों में उन्होंने प्रत्येक बार धर्मसभाओं का आयोजन किया। इन धर्मसभाओं में कृष्ण वासुदेव, उनके परिवारजन तथा द्वारिका के अन्य नागरिकगण उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए। तदुपरान्त कृष्ण वासुदेव के किन्हीं परिवारजनों ने अरिष्टनेमि के सान्निध्य में दीक्षा प्राप्त की। श्री कृष्ण के नेमिनाथ से धर्मश्रवण के कुछ प्रसंग द्रष्टव्य है-श्री कृष्ण ने गजकुमार के विवाह के समय गिरनार पर भगवान् नेमिनाथ से त्रिषष्टि शलाकापुरुषों की उत्पत्ति के बारे में पूछा। प्रस्तावे हरिरप्राक्षीजिनेन्द्रं प्रणिपत्य सः। अत्यन्तादरपूर्णेच्छः श्रोतृलोकहितेच्छया। अर्हतां चक्रिणामर्धचक्रिणां सीरधारिणाम्। उत्पत्तिं प्रतिशत्रूणां जिनानामन्तराणि च॥२१ . श्री कृष्ण के प्रश्न के उत्तर अनुसार जिनेन्द्र ने त्रिषष्टि शलाकापुरुषों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन कर सम्पूर्ण धर्मसभा को लाभान्वित किया। हरिवंशपुराण के साठवें सर्ग में इन्हीं शलाकापुरुषों की उत्पत्ति के बारे में नेमिनाथ का श्री कृष्ण को ज्ञानोपदेश का चित्रण है। एक बार जब लम्बे विहार के पश्चात् नेमिनाथ पुनः गिरनार पर समवसरण को सुशोभित करते हुए विराजमान हो गये। उस समय अन्तःपुर की रानियाँ, मित्रजन, द्वारिका की प्रजा तथा प्रद्युम्न आदि पुत्रों से सहित वसुदेव, बलदेव तथा श्री कृष्ण भी बड़ी विभूति के साथ आये और भगवान् नेमिनाथ को नमस्कार कर समवसरण में यथास्थान बैठ धर्म श्रवण करने लगे। 'वसुदेवो बलः कृष्णः सान्तःपुरः सुहृज्जनः। द्वारिकाप्रजया युक्तः प्रद्युम्नादिसुतान्वितः॥ - % 3D