________________ (5) बार खसौयत न्हातै। (सूरसागर पद संख्या - 3547) (6) ताकी जननीछार। (सूरसागर पद संख्या - 3836) (7) गुरु चींटी ज्यों पानी। (सूरसागर पद संख्या - 3958) (8) ज्यों खेरे की दूब। (सूरसागर पद संख्या - 3989) (9) माखी मधु। (सूरसागर पद संख्या - 4008) (10) फिरत धतूरा खाए। (सूरसागर पद संख्या - 4040) (11) गुड़ दोर ज्यों तोरी। (सूरसागर पद संख्या - 3361) (12) मधु दूहे की माखी (सूरसागर पद संख्या - 3209) (13) लौंडी की डौड़ी जग बजी। (सूरसागर पद संख्या - 3658) (14) अंग आग बई। (सूरसागर पद संख्या - 3703) (15) दई प्रेम की फाँसी। (सूरसागर पद संख्या - 3707) (16) रीस चढ़ाई। (सूरसागर पद संख्या - 1868) (17) हाथ बिकानी। (सूरसागर पद संख्या - 1898) (18) मिली दूध ज्यों पानी। (सूरसागर पद संख्या - 1898) (19) लेन न देन। .. (सूरसागर पद संख्या - 2251) (20) मरत लोचन प्यास। (सूरसागर पद संख्या - 3228) (21) मन की मन ही माँझ रही। (सूरसागर पद संख्या - 3280) (22) भई भूस पर भीति। (सूरसागर पद संख्या - 3184) (23) घुर ही ते खोटो खायों है। . (सूरसागर पद संख्या - 3965) (24) गूंगे गुर की दसा। (सूरसागर पद संख्या - 2529) (25) मोल लियो बिन मोल। (सूरसागर पद संख्या - 1457) लोकोक्तियाँ :- महाकवि सूर ने सर्वत्र अपने कथन की पुष्टि में लोकोक्तियों का प्रयोग किया है। उक्ति की वक्रता इसका अनिवार्य गुण है। कवि ने लोकोक्तियों का परिष्कार भी किया है। प्रयोग की दृष्टि से उन्होंने तीनों प्रकार की लोकोक्तियों को प्रयुक्त किया है-(१) प्रचलित कहावतें (2) परिष्कृत लोकोक्तियाँ तथा (3) उनकी निजी उक्तियाँ / सूरसागर में वर्णित कुछ लोकोक्तियाँ द्रष्टव्य हैं(१) एकपंथ द्वे काज। (सूरसागर पद संख्या - 3558)