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________________ एवं समुद्ररूपी परिखा से घिरी हुई थी। रत्न एवं स्वर्ण से निर्मित अनेक खण्डों के बड़ेबड़े महल में आकाश को रोकती हुई वह द्वारिकापुरी आकाश से च्युत अलकापुरी के समान सुशोभित हो रही थी। कमल तथा नीलोत्पलों आदि से आच्छादित स्वादिष्ट जल से युक्त वापी, पुष्करिणी बड़ी-बड़ी वापिकाएँ, सरोवर और ह्रदों से युक्त थी। देदीप्यमान कल्पलताओं से आलिंगित कल्पवृक्षों के समान सुशोभित पान-लौंग तथा सुपारी आदि के उत्तमोत्तम वनों से सहित थी। वहाँ सुवर्णमय प्राकार और गोपुरों से युक्त बड़े-बड़े महल विद्यमान थे तथा सभी स्थानों पर सुख देने वाले रंग-बिरंगे मणिमय फर्श शोभायमान थे। - "ऋतु-वर्णन" की दृष्टि से हरिवंशपुराण के एक वसन्त-वर्णन तथा शरद्-वर्णन को लिया जा सकता हैवसन्त-वर्णन : मधुलिहां मधुपानजुषां कुलैः कुरवका वकुलाः सुभगाः कृताः। द्विपदषट्पदभेदवतां रवैः श्रयति वाश्रयं आश्रयिणो गुणान्॥ करिकटेष्वयुगच्छदगन्धिषु स्थितिमपास्य मदभ्रमराः श्रिताः। ससहकारसुरद्रुममञ्जरीरभिनवासु रतिर्महती भवेत्॥(५५/३७-३८) अर्थात् - अनन्तर एक समय वसन्तऋतु के आगमन पर समस्त वन-उपवन फूल रहे थे। वासन्ती फूलों की पराग से सुगन्धित श्रम को दूर करने वाली ठण्डी दक्षिण की वायु सब दिशाओं में बह रही थी। आम्रलताओं के रस का आस्वादन करने वाली सुन्दर कण्ठ से मनुष्यों का मन-हरण करने में अत्यन्त दक्ष और काम को उत्तेजित करने में निपुण मधुरभाषिणी कोकिलाएँ उस पर्वत पर चारों ओर कुहू-कुहू कर रही थी। मधुपान करने में लीन भ्रमरों के समूह से कुरवक और मौलिश्री के वृक्ष तथा द्विपद अत्यन्त मनोहारी हो गये थे। फूलों के भार को धारण करने वाले वृक्ष अत्यन्त नम्रीभूत हो गये थे। फूल चुनते समय वृक्षों की ऊँची शाखाओं को स्त्रियाँ किसी तरह अपने हाथ से पकड़कर नीचे की ओर खींच रही थी, उससे वे नायक के समान स्त्री द्वारा केश खींचने के सुख का अनुभव कर रहे थे। शरद्-ऋतु : अन्तर्दधे धवल गोकुलघोषघोषैर्मेघावली लघुनिधूतरवेव धूम्रा। मेघावरोधपरिमुक्तदिशासु सूर्यः पादप्रसारण सुखं श्रितवांश्चिरेण॥ रोधोनितम्बगलदमबुविचित्रवस्त्राः सावर्त्तनाभिसुभगाश्चलमीननेत्राः। फेनावलीवलयवीचिविलासवाहाः क्रीडासु जबरबलासरितोऽस्य चित्तम्॥ ... अर्थात् - अथानन्तर किसी समय शरद्-ऋतु आयी, सो वह ऐसी जान पड़ती -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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