________________ आचार्य जिनसेन एवं महाकवि सूर ने अलंकारों का प्रयोग विशेषकर सौन्दर्य बोध के लिए किया है। इनके काव्य में जो अलंकारों का समावेश मिलता है, वह प्रयत्न साध्य न होकर स्वतः एवं सहज रूप में है। यहाँ दोनों के काव्य में से आवश्यक उद्धरणों को प्रयुक्त करते हुए उनके अलंकार विधान पर विचार करेंगे। ___हरिवंशपुराण में शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों का प्रयोग अधिक हुआ है। अर्थालंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा को कवि ने सविशेष प्रयुक्त किया है। इसके अलावा सन्देह, भ्रन्तिमान, अतिशयोक्ति, अन्योक्ति एवं दृष्टांत इत्यादि का भी पर्याप्त स्थान रहा है। शेष अलंकार अपेक्षाकृत कम प्रयुक्त हुए हैं। शब्दालंकारों में अनुप्रास का प्रयोग सर्वाधिक मिलता है। हरिवंशपुराण में प्रयुक्त अलंकार भावों की सहज परिणिति में सहायक बन पड़े हैं, जो सहजाभिव्यक्ति के परिचायक हैं। कहीं-कहीं पर अलंकारों का बलात् प्रयोग भी कवि ने किया है। - सूरसागर में कवि ने अपने उमड़ते हुए अथाह भावसागर को सहज अलंकृत शैली में अभिव्यक्त किया है। उनकी रचनाओं में जैसी भाव-प्रणवता है, वैसी ही आलंकारिकचमत्कृति भी। सूर की अनुभूति व अभिव्यक्ति के बारे में शुक्लजी ने कहा है कि-"सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, प्रायः उतनी ही चतुरता एवं वाग्विदग्धता भी सूर ने शब्दालंकारों का अधिक प्रयोग न करके अर्थालंकारों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया है। शब्दालंकारों में श्लेष, अनुप्रास, यमक, वक्रोक्ति व वीप्सा का प्रयोग विशेष रूप से हुआ है जबकि अर्थालंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा एवं सादृश्यमूलक अलंकारों का प्रयोग सर्वाधिक रूप से हुआ है / महाकवि सूर का अलंकार प्रयोग अत्यधिक सहजता पर आधारित है। इनमें सारल्य है तो भाव-व्यंजना की पूर्ण क्षमता भी है। इनमें सरसता भी है, तो भावोत्कर्षता भी। कवि ने "अलंकार-योजना" में शायद ही कोई ऐसा अलंकार होगा या उसका भेदोपभेद होगा जिसका प्रयोग नहीं किया हो। कवि की इसी प्रतिभा सम्पन्नता के कारण ही उन्हें "महाकवि" पद का अधिकारी कहा जाता है। (क) शब्दालंकार :___ जो अलंकार शब्दाश्रित है, उसे शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकारों के बारे में यह माना जाता है कि ये चमत्कारोत्पादक होते हैं, भावोत्कर्षक नहीं। परन्तु यह मान्यता ठीक नहीं है क्योंकि इनमे चमत्कारमूलक अलंकार भी होते हैं तो साथ में भाव-मूलक भी। - आचार्य जिनसेन एवं सरदास ने इन अलंकारों का प्रयोग चमत्कारोत्पत्ति के लिए भी किया है तो भावों के उत्कर्ष के लिए भी। चमत्कार प्रदर्शन में "यमक" अलंकार द्रष्टव्य है