________________ इस छन्द में 16-16 के विराम से 32 मात्राएँ होती हैं। सूरसागर के वर्णनात्मक प्रसंगों में इसका उल्लेख मिलता है। जैसे भावी नहीं मिटै काहू की, करता की गति जाति न जानी। कहाँ कहाँ तै स्याम न उबर्यो कि हि राख्यो तिहिं औसर आनी॥९ (6) उपमान : इस छन्द में 12, 10 के विराम से 22 मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में दो गुरु होते है। सूर ने इसका प्रचुर प्रयोग किया है। यथा सुता महर वृषभानु की, नन्द सदनहिं आई। गृह द्वारे ही अजिर मैं, गो दुहत कन्हाई॥ (7) हरिप्रिया : मात्रिक छन्दों में यह दीर्घतम छन्द माना जाता है। इसमें 12, 12, 12 और 10 मात्राओं की यति के साथ इसमें कुल 46 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में दो गुरु होते हैं। यथा जसुमति दधि-मथन करति बैठी बर धाम अजिर। ठाढ़े हरि हँसत नान्ह दतियनि छवि छाजै। चितवन चित लै चुराई सोभा वरनी न जाई। मनु मुनि-मन-हरन-काज मोहिनी दल साजै॥१ (8) शोभन :.... इस छन्द में 14, 10 पर यति के साथ 24 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में एक जगण होता है। जैसे चौक चन्दन लिपिकै धरि, आरति सँजोइ। कहति घोष कुमारि ऐसौ, अनंद जौ नित होइ॥१२ (1) रूपमाला :. इसमें 14-10 के विराम से 24 मात्राएँ व अन्त में गुरु लघु होता है। कवि ने कहीं-कहीं शोभन रूपमाला का मिश्रण कर दिया है। जैसे तनक देरी माइ माखन तनक दैरी माइ। - तनक कर पर तनक रोटी, माँगत चरन चलाइ॥१३ ..सूर ने उपर्युक्त उल्लेखित छन्दों के अतिरिक्त भी अनेक नवीन छन्दों का प्रयोग * किया है, जिसमें योग कल्प, प्रणय, उपमित, मधरजनी, माधव मालती, प्रतिपाल, प्रभाती, =281=