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________________ न काव्यबन्धव्यसनानुबन्धतो न कीर्तिसंतानमहामनीषया। न काव्यगर्वेण न चान्यवीक्षया जिनस्य भक्त्यैव कृता कृतिर्यथा॥८ कवि के अनुसार जिनेन्द्र का नाम श्रवण व ग्रहण से ही सांसारिक पीड़ा दूर हो सकती है। उनका चरित्र ही मंगलरूप है जिससे मनोवांछित सिद्धियाँ, प्रसिद्ध धर्म, अर्थ और मोक्ष की लब्धियाँ प्राप्त होती हैं . प्रकाममाकांक्षितकामसिद्धयः प्रसिद्धधर्मार्थविमोक्षलब्धयः। भवन्ति तेषां स्फुटमल्पयत्नतः पठन्ति भक्त्या हरिवंशमत्र ये॥९ . हरिवंशपुराण में कवि ने जिन-भक्ति व श्रावक-भक्ति का सूक्ष्मतम वर्णन किया है। उन्होंने इस भक्ति के लिए सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र एवं सम्यक् दर्शन की परमावश्यकता पर विशेष बल दिया है। सम्पन्न दृष्टि के बिना कोई भक्ति नहीं कर सकता। जो इसकी उपेक्षा करता है वह क्या भक्ति करेगा? अर्थात् कुछ भी नहीं। शक्तस्योपेक्षमाणस्य सदृष्टिजनमापदि। का वा कठिनचित्तस्य जिनशासनभक्तता॥५० हरिवंशपुराण जिन-भक्ति का अगाध सागर है। इस पर अलग से शोध कार्य संभव है। हम यहाँ इसका संकेत मात्र दे रहे हैं क्योंकि यहाँ विस्तृतता प्रदान करना संभव नहीं है। __कवि शिरोमणि सूर ने भक्ति के माहात्म्य का अनेक स्थलों पर वर्णन किया है। सांसारिक दुःखों की निवृत्ति एवं परमानन्द की प्राप्ति का ऋजुमार्ग ही प्रेमभक्ति है रे मन समुझि सोचि विचारि। भक्ति विनु भगवंत दुर्लभ, कहत निगम पुकारी॥५१ भगवद्-भक्ति के बिना मानव जीवन व्यर्थ है (क).सूरदास भगवंत भजन बिनु वृथा सुजनम गर्व है।५२ (ख) सूरदास-व्रत यहै, कृष्ण भजि भवजलनिधि उतरत।५३ इतना ही नहीं कवि ने तो यहाँ तक कह दिया कि भक्ति रहित जीवन श्वान, ग्रामशूकर उष्ट्र, वृषभ तथा महिष के समान व्यर्थ है भजन बिनु कूकर सूकर जैसो। जैसे घर बिलाव के मूसा, रहत विषय बस वैसौं। सूरदास भगवंत भजन विन मनों ऊँट, वृष भैंसौं।५४ . - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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