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________________ है और पर रूप से नहीं है जैसे दूध, दूध रूप से सत्, दही के रूप में असत् है। यह अनेकान्तवाद सप्त भङ्गी नय पर आधारित है। पुराणकार ने अनेकान्तवाद के सातों नय का स्पष्ट उल्लेख किया है कि जीवादि नौ पदार्थों का सत्, असत्, उभय, अवक्तव्य, सद्-अवक्तव्य, असद्-अवक्तव्य एवं उभयअवक्तव्य इन दो भंगों से कौन जानता है? इसके आज्ञानिक-मिथ्यादृष्टियों से त्रेसठ भेद होते हैं।१३७ सप्तभङ्गीनय पर आधारित अनेकान्तवाद उसे कहते हैं, जिसमें सात वाक्य हों। वे सात वाक्य निम्नलिखित हैं(१) स्यादस्ति घटः - शायद घड़ा है। (2) स्यान्नास्ति घटः - शायद घड़ा नहीं है। (3) स्यादस्ति घटः? - शायद घड़ा है और नहीं भी है। (4) स्यादवक्तव्यो घटः - शायद घड़ा वर्णनातीत है। (5) स्यादस्ति चावक्तव्यश्च घटः - शायद घड़ा है भी और अवक्तव्य भी है। (6) स्यान्नास्ति चावक्तव्यश्च घटः - शायद घड़ा नहीं है और अवक्तव्य भी है। (7) स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्यश्च घटः - शायद घड़ा भी नहीं है और अवक्तव्य भी इस मत के अनुसार एक वस्तु का निश्चय करने के लिए उन पर अनेक दृष्टियों से विचार करना पड़ता है। जैनों के इस मत की आलोचना भी अनेक विद्वानों ने की है। श्री रामानुजाचार्य ने कहा है कि भाव और अभाव ये दोनों परस्पर विरोधी गुण किसी एक पदार्थ में नहीं रह सकते, जैसे-कि प्रकाश और अन्धकार एक जगह नहीं रह सकते।१३८ .. ___शंकराचार्य का भी यही मत है। वैसे सप्तभङ्गी नय के प्रारम्भ के चार भङ्ग ही सार्थक हैं क्योंकि जैन-आगमों में भी विधि, निषेध, उभय तथा अनुभय इन चारों पक्षों का प्रतिपादन किया गया है। इसी आधार पर ये चार वाक्य महत्त्वपूर्ण है। (1) स्यादस्ति - (विधि) (2) स्यानास्ति - (निषेध) (3) स्यादस्ति नास्ति च - (उभय) (4) स्यादवक्तव्य - (अनुभय) .... जैनदर्शन की मान्यतानुसार प्रत्येक पदार्थ अनन्त धर्मात्मक है। अनन्त धर्मात्मकता के बिना किसी पदार्थ अस्तित्व की कल्पना भी संभव नहीं है, परन्तु वस्तु विषय का कोई भी निर्णय सापेक्ष सत्य है। ऐसा समझकर जो प्रतिपादित किया जाता है, जो दृष्टिबिन्दु
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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