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________________ शिलाबलेन विज्ञातो महाकायबलो बलैः। सोऽनुयातो ययौ चक्री, द्वारिकां प्रतिबान्धवैः॥८५३-४० श्री कृष्ण के इस कृत्य से समस्त राजाओं तथा विद्याधरों ने उन्हें अर्धभरत क्षेत्र के स्वामित्व पर अभिषिक्त किया। उनके पास शत्रुओं का मुख न देखने वाला सुदर्शनचक्र, अपने शब्द से शत्रुपक्ष को कम्पित करने वाला शार्ङ्ग धनुष, सौनन्दक खड्ग, कौमुदी गदा, शत्रुओं पर कभी व्यर्थ नहीं जाने वाली अमोघमूला शक्ति, पांचजन्य शंख और विशाल प्रताप को प्रकट करने वाली कौस्तुभ मणि तथा शंख के चिह्न से चिह्नित सात रत्न थे, जो श्री कृष्ण के नारायण रूप के द्योतक थे। हरिवंशपुराण में वर्णित श्री कृष्ण का यह नारायण स्वरूप उनके ईश्वरत्व का परिचायक नहीं है। यह उनके शलाकापुरुष का परिचायक है जिसके संयोग से ही वे तीन खण्ड पृथ्वी के अधीश्वर अर्ध चक्रवर्ती थे। जैनग्रन्थों में शलाकापुरुष को दिव्य पुरुष कहा गया है। शलाकापुरुषों का आशय महाशक्तिशाली पुरुषों से है जिनकी संख्या तिरेसठ है जिनमें चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण तथा नौ बलदेव होते हैं। श्री कृष्ण इन्हीं तिरेसठं शलाकापुरुषों में नौवें नारायण के रूप में वर्णित हुए हैं। समीक्षा : इस प्रकार महाकवि सूर एवं जिनसेनाचार्य दोनों ने श्री कृष्ण के नारायण स्वरूप का चित्रण किया है परन्तु उसके दृष्टिकोण में पर्याप्त भिन्नता रही है। सूरसागर के अनुसार श्री कृष्ण परब्रह्म नारायण स्वरूप है जबकि हरिवंशपुराण के अनुसार वे शलाकापुरुष के द्योतक है। परन्तु श्री कृष्ण की अलौकिकता एवं दिव्य गुणों का दोनों कवियों ने उल्लेख किया है, जो उनकी महानता का स्पष्ट परिचायक है। यादवों का विनाश :- श्री कृष्ण का जन्म जिस यादवकुल में हुआ था। उस कुल के विनाश की कथा भी बड़ी रोचक है जिसे सूरदासजी की अपेक्षा जिनसेनाचार्य ने विस्तार से निरूपित की है। .. वैष्णव परम्परा के अनुसार महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् एक बार महर्षि व्यास, विश्वामित्र, कण्व तथा नारदमुनि द्वारिका गये। वहाँ यादवों ने पूर्ण परिहास के साथ व्यवहार किया जिससे ऋषियों ने क्रोधित होकर शाप दिया कि-श्री कृष्ण का पुत्र साम्ब लोहे का एक मूसल पैदा करेगा जिससे वृष्णि और अंधकवंश का विनाश होगा। उससे तुम श्री कृष्ण और बलराम के सिवाय सभी अपने आप का विनाश कर डालेंगे। दूसरे दिन साम्ब ने एक मूसल को जन्म दिया, जिसे उग्रसेन की आज्ञा से कूटवाकर चूर्ण करवाकर समुद्र में डाल दिया तथा सभी को मदिरा सेवन की मनाही की गई। यादव / अपने संकट का निवारण चाहते थे परन्तु द्वारिका में भयंकर उत्पात होने लगे। श्री कृष्ण
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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