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________________ 33. हरिवंश का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 31 34. बुहजण सहस्सदइयं हरिवंसुप्पत्तिं कारयं पढमम्। वंदामि वंदियं पि हु हरिवंश चैव विमलपयं / कुवलयमाला - श्लोक - 38 35. ब्रह्मचारी जीवराज ग्रन्थमाला, सोलापुर से प्रकाशित त्रिलोक्यप्रज्ञप्ति के द्वितीय भाग की प्रस्तावना में उसके सम्पादक डॉ० हीरालाल जी तथा स्व० डॉ० ए०एन० उपाध्याय ने त्रिलोक्यप्रज्ञप्ति की अन्य ग्रन्थों के साथ तुलना करते हुए हरिवंश के साथ उसकी तुलना की है और दोनों के वर्णन में कहाँ साम्य है? कहाँ विषमता है? इसकी अच्छी चर्चा की है। 36. हरिवंशपुराण - सर्ग - 1/71-72 37. सूरदास और नरसी मेहता (तुलनात्मक अध्ययन) डॉ० भ्रमरलाल जोशी - पृ० 3 38. सूर और उनका साहित्य - डॉ० हरवंशलाल शर्मा - पृ० 25 39. सूर साहित्य और सिद्धान्त - यज्ञदत्त - पृ० 15 40. "सूर-सौरभ" - डॉ० मुंशीराम शर्मा - पृ० 41. सूरदास - डॉ० बड़थ्वाल - पृ० 25 42. सूर और उसका साहित्य - डॉ० हरवंशलाल शर्मा - पृ० 25 43. सूर-सौरभ - डॉ० मुंशीराम शर्मा - पृ० 44. सूर और उसका साहित्य - डॉ० हरवंशलाल शर्मा - पृ० 45. सूरदास और उसका साहित्य - डॉ० देशराजसिंह भाटी - पृ० 20 46. सूरदास और उसका साहित्य - डॉ० देशराजसिंह भाटी - पृ० 20 ... "अष्टछाप" श्री गोकुलनाथ कृत - संकलनकर्ता - धीरेन्द्र वर्मा - पृ० 4 (चतुर्थ संस्करण) 44. "अष्टछाप" श्री गोकुलनाथ कृत - संकलनकर्ता - धीरेन्द्र वर्मा - पृ० 4 (चतुर्थ संस्करण) 49. : सूर साहित्य और सिद्धान्त - यज्ञदत्त शर्मा - पृ० 23 50. . सूरनिर्णय - द्वारकादास परीख एवं प्रभुदयाल मित्तल - पृ० 86 51. सूरसागर पद सं० 8 - पृ० 3 52.. अष्टछाप गोस्वामी गोकुलनाथ - पृ० 18 53.. चौरासी वैष्णव की वार्ता 14. अष्टछाप श्री गोकुलनाथ कृत - पृ० 18 15. सूरदास और उनका साहित्य - देशराजसिंह भाटी - पृ० 25 6. सूरसागर पद सं० 4356 - पृ० 1383 =1158
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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