________________ तथापि ब्रह्म, अवतारी, मानवोपम श्री कृष्ण का एक में अनेक की व्यक्तित्व प्रभा से आलोकित प्रभा-रूप ही कवियों को ग्राह्य तथा मान्य रहा है। आचार्य जिनसेन व सूरदास भिन्न-भिन्न परम्परा के कवि रहे हैं। उनकी भाषा व रचना काल अलग-अलग है परन्तु दोनों कवियों के वर्ण्य विषय में श्री कृष्ण चरित्र का मानवतावादी स्वरूप दिखाई देता है, वही इनकी सर्वश्रेष्ठ सिद्धि है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण एवं सूरसागर में श्री कृष्ण में दोनों ग्रन्थों का भारतीय संस्कृति में योगदान व उनकी साहित्यिक व सांस्कृतिक महत्ता को उजागर कर जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास है। यह शोध कार्य डॉ. हरीश गजानन शुक्ल (निवृत प्राचार्य एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष, आर्ट्स एण्ड सायन्स कॉलेज, पाटण (उत्तर गुजरात) की प्रेरणा, सतत प्रोत्साहन, सफल मार्गदर्शन का परिणाम है। उनके आत्मिक स्नेह व मार्गदर्शन के लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ। डॉ. कपूरचंद जैन, निदेशक के.के. डिग्री कॉलेज खतौली (उत्तर प्रदेश), अध्यक्ष सेवा मन्दिर रावटी जोधपुर, डॉ. गुलाबचंद जैन, प्रकाशन अधिकारी भारतीय ज्ञान पीठ, नई दिल्ली, कानजीभाई पटेल, प्राचार्य आर्ट्स एवं सायन्स कॉलेज पाटण, विनीत गोस्वामी, हिन्दी विभागाध्यक्ष आर्ट्स एण्ड सायस कॉलेज पिलवई (उत्तर गुजरात), मुनीश्री कीर्तिविजय जी एवं मित्र श्री डॉ. हुसैन खाँ शेख, श्री कल्याण सिंह चौहान, प्रवीण पण्डया का मैं आभारी हूँ जिनके सौजन्यपूर्ण सहयोग एवं प्रेरणा से मैं सदैव लाभान्वित रहा हूँ। पूज्य पिताजी श्री चतुरदास जी वैष्णव एवं अग्रज श्री नत्थुराम जी वैष्णव की असीम अनुकम्पा को आभार जैसे औपचारिक शब्दों का प्रयोग कर मैं घटाना नहीं चाहता। अनुज मानदास वैष्णव के सहयोग को भी भुलाया नहीं जा सकता, जिसने इस शोध प्रबन्ध को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने में मेरी मदद की। अंत में मैं उन सभी महर्षियों एवं विद्वानों के प्रति अपनी श्रद्धांजली समर्पित करता हूँ जिनके साहित्य को मैंने इस ग्रन्थ में नि:संकोच भाव से उपयोग किया है। . यह ग्रन्थ श्री प्रकाशचन्द्र बोथरा, पूर्व अध्यक्ष खरतरगच्छ संघ सांचौर एवं प्राकृत भारती अकादमी जयपुर के निदेशक, साहित्यवाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी के सहयोग से प्रकाशित होकर पाठकों के हाथ में है, अतः मैं उनका हृदय से आभारी हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरा यह लघु प्रयास कृष्ण काव्य परम्परा की नवीन दिशाएँ प्रस्तुत करने में उपयोगी सिद्ध होगा। -डॉ. उदाराम वैष्णव प्राध्यापक (हिन्दी) रा.उ.मा.वि. सांचौर (राज.) - - 26