________________ (8) शान्त : आपका पूरा नाम शांतिषेण जान पड़ता है। आपकी उत्प्रेक्षा अलंकार से युक्त वक्रोक्तियों की प्रशंसा पुराणकार ने की है। शायद आपका कोई प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ होगा। जिनसेनाचार्य की गुरु-परम्परा में भी जयसेन से पूर्व एक शांतिषेण आचार्य का नामोल्लेख आता है। सम्भव है कि ये शांत कवि वही शांतिषेण हो ! (9) विशेषवादि : इनके किसी गद्य-पद्य मय ग्रन्थ की उक्तियों की बहुत विशेषता का वर्णन करते जिनसेनाचार्य ने इनका उल्लेख किया है। "पार्श्वनाथ चरित" के रचयिता "वादिराज" ने भी इनका उल्लेख करते हुए लिखा है कि उनकी रचनाओं को सुनकर अनायास ही पण्डित जन विशेषाभ्युदय को प्राप्त कर लेते हैं।२८ (10) कुमारसेन गुरु : जिनकी यशःप्रभा चन्द्र के समान उज्ज्वल और समुद्र पर्यन्त विस्तृत है, ऐसे "चन्द्रोदय" ग्रन्थं के रचयिता प्रभाचन्द्र आपके गुरु थे। आपका निर्मल सुयश समुद्रान्त विचरण करता था। इनका समय निश्चित नहीं है। "चामुण्डरायपुराण" के पद्य नं० 15 में भी आपका स्मरण किया गया है। (11) वीरसेन गुरु : - हरिवंशपुराणकार ने कवि चक्रवर्ती के रूप में वीरसेन का स्मरण किया है और कहा है कि जिन्होंने स्वपक्ष और परपक्ष के लोगों को जीत लिया है तथा जो कवियों में चक्रवर्ती है ऐसे वीरसेन स्वामी की निर्मल कीर्ति प्रकाशित हो रही है।३० आचार्य वीरसेन न केवल सिद्धान्त के पारंगत विद्वान् थे वरन् गणित, न्याय, ज्योतिष, व्याकरण आदि विषयों का भी मर्मस्पर्शी ज्ञान उन्हें प्राप्त था। इनका बुद्धि-वैभव अत्यन्त अगाध तथा पाण्डित्यपूर्ण था। वीरसेन के शिष्य जिनसेन ने अपने "आदिपुराण" में इनकी "कविवृन्दारक" कह कर स्तुति की है। . वीरसेन "पंचास्तुपान्य" के आचार्य चन्द्रसेन के प्रशिष्य और आर्यनन्दि के शिष्य तथा महापुराण आदि प्रसिद्ध ग्रन्थों के रचयिता जिनसेन के गुरु थे। आप षट्खंडागम पर बहत्तर हजार श्लोक प्रमाण धवला टीका तथा "कषायप्राभृत' पर बीस हजार श्लोक "जयधवला टीका" लिखकर दिवंगत हुए हैं। जिनसेन ने उन्हें कवियों का चक्रवर्ती तथा अपने-आपके द्वारा परलोक विजेता कहकर सुशोभित किया है। आपका समय विक्रम की 9वीं शती का पूर्वार्द्ध है। - - %DED