SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SOLUMAR दिग्दर्शन अमात्यों और धी-श्री-अधिकारसम्पन्न गृहस्थों के द्वारा अहिंसापोषक प्रयत्न उत्तरोत्तर बराबर होता रहा है। इन (जैन) साधुओं का प्रवास और उपदेश-प्रचार पिछले जमाने में गुजरात, मारवाड़ आदि में ज्यादह रहा है / यही कारण है कि उन देशों में अहिंसा का वातावरण आज भी अधिकांश पुष्ट रूप में दिखाई देता है। भारत की गौरव-मूर्ति लोकमान्य तिलक ने एक वक्त अपने व्याख्यान में कहा था कि-'अहिंसा परमो धर्मः' का असर ब्राह्मण-धर्म पर बड़ा जबरदस्त पड़ा है, अर्थात् यज्ञादि में पशुहिंसा जो होती थी, वह आज कल नहीं होती, यह जैन धर्म की ब्राह्मण-धर्म पर बड़ी भारी छाप है / ब्राह्मण-धर्म में से हिंसा के घोर पातक को हटाने का श्रेय जैन धर्म को है। नौजीयन विद्वान् डॉ. स्टीनकोनो कहते हैं:-- 'आज भी अहिंसा की शक्ति पूर्ण रूप से जागृत है। जहाँ कहीं भारतीय विचार और भारतीय सभ्यता ने प्रवेश किया है, वहाँ सदैव भारत का यही सन्देश रहा है / यह तो संसार को भारत का गगनभेदी सन्देश है / मेरा विश्वास है कि पितृभूमि भारत के भावी भाग्य में कुछ भी होना निर्मित हो, परन्तु भारतीयों का यह सिद्धान्त सदैव अखंड रहेगा' / अस्तु अब मैं चाहता हूँ कि जैनसाहित्यविषयक भी जरा सूचन कर लूँ जैनसाहित्य ___ विना अतिशयोक्ति के मैं यह कह सकता हूँ कि, जैनसाहित्य जब से प्रकाश में आने लगा है, तब से देश-विदेश के अभ्यासी विद्वान् उस पर बड़े मुग्ध होने लगे हैं / जैनों की आगम-भाषा ' अर्धमागधी' है / उसमें आगमों के सिवाय और भी बहुत विपुल वाङ्मय है /
SR No.004298
Book TitleJain Siddhant Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherBhogilal Dagdusha Jain
Publication Year1937
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy