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________________ जैनषर्स के सम्प्रदाय : 71 द्वारा हुई तथा इनकी आचार्य परम्परा एवं मान्यताएँ क्या थी? यह सब जानकारियां अज्ञात हैं। 12. देवाचार्य गच्छ : पल्लिका (वर्तमान पाली) से प्राप्त 1121 ई० के एक अभिलेख में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध है।' इसी अभिलेख में महेश्वराचार्य आम्नाय के उद्योतन आचार्य का भी उल्लेख मिलता है। साहित्यिक साक्ष्य के अभाव में इस गच्छ से संबंधित और अधिक जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। 13. बारासणा गच्छ : संभवतः आचार्य यशोदेवसूरि के द्वारा 1127 ई० में इस गच्छ की उत्पत्ति हुई थी। इसी गच्छ के आचार्य देवचन्द्रसूरि द्वारा विविध जेब मन्दिरों में बहुत-सी मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराने के उल्लेख मिलते हैं। इस गच्छ के संबंध में भी अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। 14 कोरंट गच्छ: - यह गच्छ उपकेशगच्छ की एक शाखा के रूप में पहचाना जाता है। उपलब्ध अभिलेखों में इस गच्छ के तीन आचार्यों-कक्कसूरि, सावदेवसूरि और नन्नसूरि के नाम मिलते हैं। : इस गच्छ की उत्पत्ति राजस्थान के प्राचीन नगर एवं प्रसिद्ध जैन तीर्थ कोरटा से हुई। इस गच्छ के ऐतिहासिक अध्ययन के लिए साहित्यिक एवं अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं। साहित्यिक साक्ष्य के रूप में इस गच्छ की तीन प्रशस्तियां उपलब्ध होती हैं। 1. महावीर चरित्र को वाता प्रशस्ति : ..' महावीर चरित्र की वि० सं० 1368 में की गयी प्रतिलिपि की दाता प्रशस्ति में कोरंटगच्छोय आचार्य कृष्णर्षि और आचार्य नन्नसूरि का नामोल्लेख उपलब्ध होता है। 1. नाहर, पूरनचन्द-जैन लेख संग्रह, भाग 3, क्रमांक 813 .2. अबु दमंडल का सांस्कृतिक वैभव, पृ० 225; 'उद्धृत-मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म, पृ० 88 3. डॉ. शिवप्रसाद-कोरंट गच्छ, श्रमण, वर्ष 40 बैंक 5 (मार्च 1989), पृ० 16
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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