________________ 58 : जैनधर्म के सम्प्रदाय राओं को दर्शन तथा आचार सम्बन्धी मान्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन करते समय आगे के अध्यायों में विस्तारपूर्वक करेंगे। श्वेताम्बर मतानुसार दिगम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति : . श्वेताम्बर आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के अनुसार महावीर निर्वाण के 609 वर्ष पश्चात् ( अर्थात् वि० सं० 199) रथवोरपुर में बोटिक मत ( दिगम्बर मत ) की उत्पत्ति हुई थी। इस कथन की पुष्टि उत्तराध्ययननियुक्ति, विशेषावश्यकभाष्य और आवश्यकचूणि जैसे प्राचीन ग्रंथों से भी होती है। सामान्य मान्यता यह है कि आठवें निव के रूप में शिवभूति द्वारा जिस बोटिक मत की उत्पत्ति हुई थी वही बोटिक मत आगे चलकर दिगम्बर कहलाया है। कथा के अनुसार रथवीरपुर में शिवभूति नामक एक सामन्त (क्षत्रिय ) रहता था। जिसने अनेक युद्धों में बहादुरी के कारण अपने राजा से सम्मान पाया था। राजा के द्वारा सम्मानित होने के कारण वह स्वेच्छारी हो गया था। एकबार काफी रात बीत जाने के पश्चात् शिवभूति जब घर पर आया तो उसकी माँ ने घर का दरवाजा नहीं खोला और उसे फटकार लगाते हुए कहा-इस समय जहाँ तुम्हारे लिये द्वार खुले हों, वहाँ चले जाओ। यह कथन सुनकर शिवभूति वापस मुड़ा और भाग्यवश ऐसे स्थान पर जा पहुंचा, जहाँ जैन साधु ठहरे हुए थे। पहले तो शिवभूति ने श्रमणों से दीक्षा देने का बहुत आग्रह किया, किन्तु जब श्रमणों ने दीक्षा देने से इन्कार कर दिया तो शिवभूति स्वयं अपने हाथों से केशलोच करने लगा। उसे केशलोच करता देखकर ही आर्यकृष्ण ने संभवतः यह अनुमान लगाया कि इसकी वैराग्य भावना प्रबल है और शायद यही सोचकर उन्होंने उसे दीक्षा भी दे दी। कुछ समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् एकबार जब शिवभूति मुनि वेश में पुनः अपने नगर आया तो राजा ने उसे एक मूल्यवान् रत्न-कम्बल भेंटस्वरूप दिया, जिसे शिवभूति ने ग्रहणकर लिया। शिवभूति के गुरु आर्यकृष्ण ने जब उसके पास यह मूल्यवान् रत्न-कम्बल देखा तो उसे समझाया कि ऐसे वस्त्र रखना साधुओं के लिए उचित नहीं है इसलिए इस वस्त्र को पुनः लौटा देना चाहिये। किन्तु शिवभूति ने अपने गुरु की इस आज्ञा का पालन नहीं किया। आर्यकृष्ण ने एक दिन शिवभूति की अनुपस्थिति में उस कम्बल के छोटे-छोटे टुकड़े करके बैठने के आसन बना दिए / जब शिवभूति ने यह देखा तो वह अत्यधिक क्रोधित हुआ, उसने