SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेखकीय जैनधर्म श्रमण परम्परा का एक प्राचीनतम धर्म है। आज यह भी "विभिन्न सम्प्रदायों एवं उपसम्प्रदायों में विभक्त है, फिर भी इन सम्प्रदायों. के इतिहास के संबंध में जनसाधारण में अज्ञान ही है / परंपरागत विद्वानों ने अपनी-अपनी सम्प्रदायगत मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में ही इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि साम्प्रदायिक अभिनिवेश से मुक्त होकर इस दिशा में कुछ कार्य किया जाये। मैं यह तो नहीं कहता कि इस सम्बन्ध में विद्वानों ने लेखनो नहीं चलाई है, क्योंकि कुछ पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने इस दिशा में यथाप्रसंग तटस्थ दृष्टि से चिन्तन किया है, फिर भी एक स्वतन्त्र कृति की कमी ही थी। यद्यपि अंग्रेजी में मुनि उत्तमकमलजी की एक कृति थो, 'किन्तु हिन्दी भाषा में तो ऐसी कृति का अभाव ही था। मैंने इसी अभाव की पूर्ति का यथासंभव प्रयास किया है / मैंने इसके लेखन में इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि कृति विद्वत् भोग्य होने के स्थान पर जनसाधारण के लिए अधिक उपयोगी हो। प्रस्तुत ग्रन्थ मेरे शोध-प्रबन्ध का संशोधित रूप है। यह सात अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में जैनधर्म के उद्भव एवं विकास के संबंध में परम्परागत एवं ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया गया है। इसमें 'प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर महावीर निर्वाण तक को जैनधर्म की स्थिति को प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में जैन आगम, जैन 'मन्दिर, मूर्तियाँ एवं जैन गुफाएँ, जैन अभिलेख तथा चित्रकला आदि ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर जैन धर्म के सम्प्रदायों के उद्भव एवं विकास की चर्चा की गई है। तृतीय अध्याय में जैनधर्म के विभिन्न संप्रदायों का परिचय दिया गया है। इसमें श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय सम्प्रदाय तथा उनके उपसम्प्रदायों का परिचय देते हुए उनके उद्भव आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन सम्बन्धी मान्यताओं को प्रस्तुत किया गया है। इस प्रस्तुतीकरण में मुख्य रूप से तत्त्वमीमांसा संबंधी उन विषय-बिन्दुओं की चर्चा को गई है, जो श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा में विवादास्पद हैं। विभिन्न संप्रत
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy