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________________ तृतीय अध्याय जैन धर्म के सम्प्रदाय प्रायः देखा जाता है कि किसी भी धर्म के संस्थापक एवं धर्म प्रवर्तक महापुरुष के निर्वाण अथवा देहावसान के पश्चात् उनके संघ अथवा सम्प्रदाय में नेतृत्व के प्रश्न को लेकर बिखराव होना प्रारम्भ हो जाता है। किन्तु कभी-कभी यह बिखराव ऐसे महापुरुषों के जीवनकाल में भी हो जाता है, जिसका मुख्य कारण वैचारिक मतभेद होता है। जैन संघ भी बिखराव की इस प्रक्रिया से विलग नहीं रह सका। जैन आगमों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि वैचारिक मतभेद की प्रक्रिया महावीर के जीवनकाल में ही प्रारम्भ हो चुकी थी, किन्तु जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय महावीर के निर्वाण के पश्चात् ही अस्तित्व में आये। ___ महावीर के जीवनकाल में एवं उसके पश्चात् भी उनसे वैचारिक मतभेद रखने वाले व्यक्ति निलव कहलाए / महावीर को परम्परा में कुल सात निलव ऐसे हुए थे, जिनका महावीर के विचारों से मतभेद था। जमालि और तिष्यगुप्त ये दो निह्नव ऐसे थे, जो महावीर के जीवनकाल में ही हुए थे। इन्होंने महावीर की मान्यता का विरोध करते हुए अपने नये सिद्धान्त प्रतिपादित किये थे। शेष पांच निव महावोर निर्वाण के पश्चात् हुए थे। सात निह्नव और उनके सिद्धान्त : . महावीर के विचारों से मतभेद रखने वाले सात निह्नव कौन थे तथा वे कब और किन प्रश्नों को लेकर जैन धर्म से अलग हुए थे? इसकी संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है-- 1. जमालि - महावीर के केवली होने के चौदहवें वर्ष के अन्त में सर्वप्रथम जमालि नामक एक शिष्य ने महावीर की मान्यता से असहमति प्रकट को थी।' महावीर क्रियमाण को कृत कहते थे, उनके अनुसार जो किया जा रहा 1. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 783-784 . 2. (क) आवश्यकभाष्य, गाथा 125 (ख) कल्याणविजयगणि-श्री पट्टावरले पराग संग्रह, पृ० 68
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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