________________ प्रकाशकीय जैनधर्म के सन्दर्भ में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने के लिए उसके विभिन्न सम्प्रदायों और उनकी मान्यताओं का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि आज जो जैनधर्म जीवित है, वह विभिन्न सम्प्रदायों के रूप में हो है। हमारा दुर्भाग्य यह है कि हम साम्प्रदायिक आग्रहों में इतने बँट गए हैं कि न तो हम दूसरे सम्प्रदायों का इतिहास जानते हैं और न उनकी मान्यताओं की सापेक्षिक उपयोगिता को ही समझ पाते हैं। इस दिशा में तटस्थ दृष्टि से चिन्तन और लेखन की आवश्यकता बनी हुई थी। डॉ. सुरेश सिसोदिया ने जैनधर्म के विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन तथा आचार सम्बन्धी मान्यताओं पर अपना शोध-प्रबन्ध लिखा, जिस पर उन्हें मोहनलाल सुखाड़िया, विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा पी-एच. डो० को उपाधि से अलंकृत भी किया गया। डॉ० सिसोदिया संस्थान के शोधअधिकारी भी हैं, अतः संस्थान ने अपना दायित्व समझकर उनकी इस कृति को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। हम संस्थान के मानद निदेशक प्रो० सागरमल जी जैन के आभारो हैं, जिन्होंने प्रस्तुत कृति को परिष्कृत कर प्रकाशित करने में हर सम्भव सहयोग दिया है। हम संस्थान के मार्गदर्शक प्रो० कमलचन्द जी सोगानो, मानद सह निदेशिका डॉ. सुषमा जी सिंघवी एवं मन्त्री श्री वीरेन्द्रसिंहजो लोढा के भी आभारी हैं, जो संस्थान के विकास में अपना मार्गदर्शन एवं सहयोग दे रहे हैं। प्रस्तुत कृति के प्रकाशन हेतु श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता ने अपने 'हीरक जयन्ति वर्ष (1994) के उपलक्ष्य में दस हजार रु० का अनुदान प्रदान किया है, एतदर्थ हम उसके संचालकों के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं / कृति के सुन्दर एवं सत्त्वर मुद्रण के लिए हम वर्द्धमान मुद्रणालय के भी आभारी हैं। गुमानमल चोरडिया अध्यक्ष सरदारमल कांकरिया महामन्त्री