SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 226 : जैनधर्म के सम्प्रदाय मद्य, मांस और मधु के त्याग के साथ-साथ पांच अणुव्रतों का पालन . अष्टमूलगुण माने गये हैं। चारित्रसार में पांच अणुव्रतों तथा मद्य और मांस को तो उसमें सम्मिलित किया है किन्तु शहद के स्थान पर वहाँ जुआ का उल्लेख हुआ है / पुरुषार्थसिद्धयुपाय में मद्य, मांस और शहद के साथ पाँच प्रकार के उदम्बर फलों के त्याग को ही अष्टमूलगुण माना गया है। सागारधर्मामृत में किन्हीं आचार्यों का मत देते हुए मद्य, मांस, मधु, रात्रिभोजन, उदम्बरफल आदि के त्याग, देववन्दन, जीवदया और जलगालन-ये आठ मूलगुण कहे गये हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रावक के मार्गानुसारी गुणों और मूलगुणों को लेकर दोनों हो सम्प्रदायों के आचार्यों में परस्पर मतभेद है। यद्यपि सभी जैनाचार्य इस सन्दर्भ में एकमत हैं कि श्रावक जीवन को प्राथमिक अपरिहार्यता सप्त कुव्यसनों का त्याग है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में सप्त कुव्यसनों में क्रम को छोड़कर सामान्यतया एकरूपता ही है। पूजा विधि : . जैन परम्परा में कुछ सम्प्रदाय मूर्तिपूजक हैं और कुछ अमूर्तिपूजक हैं / सभी मूर्तिपूजक सम्प्रदायों की पूजा विधि भो समान नहीं है / श्वेताम्बर परम्परा में स्थानकवासो तथा तेरापंथो सम्प्रदाय अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय हैं। दिगम्बर परम्परा में तारणपंथ सम्प्रदाय अमूर्तिपूजक होते हुए भी इसमें शास्त्रपूजा होती है तथा इसके श्रावक चेत्यालय भो बनवाते हैं। ___ श्वेताम्बर और दिगम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदायों में भी श्रमण जिन प्रतिमाओं की केवल भावपूजा ही करते हैं, द्रव्यपूजा नहीं करते हैं। द्रव्यपूजा श्रावक हो करते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के श्रावक सचित्त द्रव्य (फल, फूल इत्यादि ) से पूजा करते हैं, लेकिन दिगम्बर परम्परा में सिर्फ बीसपंथो सम्प्रदाय के श्रावक हो सचित्त द्रव्य से पूजा करते हैं। दिगम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के श्रावक अचित्त द्रव्य ( सूखे चावल एवं सूखे मेवे आदि ) से हो प्रतिमा पूजन करते हैं / श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के श्रावक जिन-प्रतिमा को वस्त्र, आभू षण आदि से अलंकृत करते हैं, किन्तु दिगम्बर परम्परा में वस्त्र, आभूषण से युक्त प्रतिमा को पूजनोय नहीं माना गया है। दिगम्बर परम्परा में प्रतिष्ठा के पूर्व पंचकल्याणक के समय दीक्षा कल्याणक के पहले तक हो प्रतिमा को वस्त्र, आभूषण आदि पहनाये जाते हैं, बाद में नहीं।
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy