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________________ विभिन्न सम्प्रदायों को श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 217 को भी एक दिवस आदि के लिए कम करना देशावकाशिक व्रत है।' लाटीसंहिता में देशावकाशिक व्रत का कथन करते हुए विषय-भोग सेवन, भोजन और मैथुन के त्याग पर तथा मौनव्रत धारण करने पर बल दिया है। लाटीसंहिता में ही इस व्रत का पालन करने वाले को घर, गली, -गाँव, छावनी, नदी, क्षेत्र, वन आदि की भी एक निश्चित समय के "लिए मर्यादा करने को कहा है। यह समय वर्ष, माह, पक्ष और नक्षत्र किसी भी रूप में हो सकता है। अतिचार : __ प्रत्येक व्रत की तरह देशावकाशिक व्रत के भी पाँच अतिचार माने गए हैं / उपासकदशांगसूत्र में आनयन-प्रयोग, प्रेष्यवण-प्रयोग, शब्दानुगात, रूपानुपात और बहिःपुद्गलप्रक्षेप-ये पांचअतिचार बतलाए हैं, तत्त्वार्थसूत्र में आनयन, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप को इस व्रत के अतिचार माने हैं। रत्नकरकण्डकश्रावकाचार में प्रेषण, शब्द,आनयन, रूपाभिव्यक्ति और पुद्गलक्षेप को अतिचार बतलाए हैं।' सागारधर्मामृत में पुद्गलक्षेपण, शब्दश्रावण, स्वाङ्गदर्शन, प्रेषण और आनयन-ये पाँच अतिचार बतलाए हैं। . देशावकाशिक व्रत के इन अतिचारों को देखने से ज्ञात होता है कि "प्रायः सभी ग्रन्थों में अतिचारों के नाम एवं स्वरूप में कोई भिन्नता नहीं है। मात्र कहीं शाब्दिक भिन्नता है या क्रम में अन्तर है। उपासकदशांगसूत्र में आनयन-प्रयोग को पहले स्थान पर गिना गया है तो रत्नकरण्डक"श्रावकाचार में तीसरे स्थान पर और सागार धर्मामृत में इसो अतिचार .:1. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 367-368 2. लाटीसंहिता, 6 / 123 3. वही, 6 / 122 4. तयाणंतरं च णं देसावगासियस्स समणोवासएणं तंच आइयारा जाणियब्वा, न समारियव्वा, तं जहा-आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सदाणुवाए, रूवाणुवाए, बहिया पोग्गलपक्खेवे / -उवासगदसाओ, 1154 5. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 26 6. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 4 / 6 7. सागार धर्मामृत, 5 / 27
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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