________________ 198 : जैनधर्म के सम्प्रदाय परम्परा समाप्त प्रायः हो गई है। इसलिए इस आधार पर भी श्रावक की पहचान नहीं की जा सकती है। श्रावक की पहचान उसके आचरण से ही हो सकती है। वस्तुतः श्रावक वही है जो श्रावकाचार का पालन करता है। श्रावकाचार: ___ श्रावक, श्रमणोपासक, उपासक, अगार, सागार अथवा गृहस्थ आदि कुछ भी नाम दें, ये जिन आचार-नियमों का पालन करते हैं, वे आचारनियम ही श्रावकाचार कहलाते हैं। श्रावकाचार का प्रतिपादन करने वाले कई ग्रन्थ हैं, जिनमें श्रावक के बारह व्रतों एवं उनके अतिचारों का अथवा ग्यारहप्रतिमाओं का उल्लेख मिलता है, किन्तु उन सभी ग्रन्थों के आधार पर यहां विवेचन प्रस्तुत करना संभव नहीं है / इसलिए हमने यहाँ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के कुछ प्रतिनिधि ग्रन्थों के आधार पर श्रावकाचार सम्बन्धी श्वेताम्बर और दिगम्बर मान्यता को प्रस्तुत किया है। आगमों में श्रावकाचार: ___स्थानांगसत्र में श्रावक के तोन मनोरथों एवं पांच अणुव्रतों का उल्लेख हुआ है / समवायांगसूत्र में श्रावक के बारह व्रतों का उल्लेख नहीं करके उसकी ग्यारह प्रतिमाओं का विवेचन किया गया है।3 उपासकदशांगसूत्र में महावीरकालीन दस श्रावकों का उल्लेख करते हुए पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत, ग्यारह प्रतिमाएँ, संलेखना आदि का वर्णन किया गया है। विपाकसूत्र में पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के गृहस्थ धर्म का उल्लेख हुआ है।" दशाश्रुतस्कन्ध में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख है तथा आवश्यकसूत्र में षडावश्यकों के साथ-साथ प्रतिक्रमण के अन्तर्गत श्रावक के बारह व्रतों के अतिचारों का भी वर्णन हुआ है। 1. स्थानांगसूत्र, 3 / 4 / 497 2. वही, 5 / 112 3. समवायांगसूत्र, 1171 4. उवासगदसाओ 1112-57 5. विपाकसूत्र, 2016 6. दशाश्रुतस्कन्ध 6 / 1-2 7. आवश्यकसूत्र-मुनि पुण्यविजय, आश्वास 6