________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएँ : 175 समाधारणता, ज्ञान सम्पन्नता, दर्शन सम्पन्नता, चारित्र सम्पन्नता, वेदनातिसहनता और मारणान्तिकातिसहनता आदि जो मूलगुण हैं, वे दिगम्बर परम्परा में इस रूप में नहीं हैं, किन्तु दिगम्बर मुनि भी इन सभी गुणों का पालन तो मूलगुणों के समान ही करते हैं। दिगम्बर परम्परा में जो पाँच समितियां कही गई हैं, वे श्वेताम्बर परम्परा में मान्य तो हैं, किन्तु उनका उल्लेख 27 गुणों में नहीं है / श्वेताम्बर परम्परा में अष्ट प्रवचन माताओं में पांच समितियों का समावेश कर दिया गया है। दिगम्बर परम्परा में श्रमण के मूलगुणों में सामायिक ( समता भाव) स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और व्युत्सर्ग आदि जो षडावश्यक गिनाये गये हैं, वे यद्यपि श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण के मूलगुणों में नहीं गिनाये गये हैं तथापि उनका पालन आवश्यक माना गया है। षडावश्यक के पश्चात् दिगम्बर परम्परा में मूलगुणों के रूप में केशलोच, अचेलकत्व, अस्नान, क्षितिशयन, अदन्तधावन, स्थितभोजन और एकभक्तव्रत का कथन है, उनमें से केशलोच, अस्नान और अदन्तधावन का पालन तो श्वेताम्बर परम्परा के श्रमण भी करते ही हैं। यह भिन्न बात है कि वे उन्हें मूलगुणों में परिगणित नहीं करते हैं, किन्तु अचेलकत्व, क्षितिशयन स्थितभोजन और एकभक्तव्रत-ये गुण न तो श्वेताम्बर मान्य साहित्य में श्रमण के मूलगुण बताये गये हैं और न ही श्वेताम्बर परम्परा के श्रमण इन गुणों का पालन दिगम्बर परम्परा के श्रमणों की तरह करते हैं। ... श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के श्रमणों के मूलगुणों सम्बन्धी -इस विवेचन से स्पष्ट है कि दोनों परम्पराओं में श्रमण के लिए जिन मूलगुणों को आवश्यक बतलाया गया है, वे क्रम एवं नामादि की दृष्टि से .चाहे कुछ भिन्न प्रतीत होते हों, किन्तु उनका सार-तत्त्व समान ही है / दोनों ही परम्पराएँ मूलगुणों के द्वारा एक आदर्श श्रमण-व्यक्तित्व का विकास करना चाहती हैं। श्रमण के अन्य गुण : . मूलगुणों के अतिरिक्त श्रमण जिन गुणों का पालन करता है उन्हें श्रमण के अन्य गुण कहा जा सकता है। अन्य गुण कहने का तात्पर्य यह 1. उत्तराध्ययनसूत्र, 24 / 1-3...... ..