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________________ 4; जैनधर्म के सम्प्रदाय न होकर श्रमण परम्परा के हो साधु सिद्ध होते हैं।' श्रमण संस्कृति में . यति एवं व्रती शब्द आज भी प्रचलन में है तथा मुनियों की तरह ही व्रती एवं यति भी पूजनीय माने जाते हैं। जैन आगम ग्रन्थों में भी यति .. शब्द का प्रयोग पाया जाता है / 2 यति शब्द की नियुक्ति इस प्रकार दी गई है-"जयमाणगो जई होई", "जतमाणतो जति"४। इसी प्रकार : बृहत्कल्प की टीका में 'यति' शब्द को परिभाषित करते हुए कहा गया है-“यतते सर्वात्मना संयमानुष्ठानेष्विति यतिः।"५ यति शब्द की ये अनेक परिभाषाएँ जो जैन आगमों, नियुक्तियों, भाष्यों, चणियों, टीकाओं एवं अन्य सिद्धान्त ग्रन्थों में मिलती हैं, वे यह सिद्ध करती हैं कि यति शब्द श्रमण संस्कृति और विशेष रूप से जैन संस्कृति से संबंधित है। व्रती शब्द का प्रयोग जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र में भी हआ है, इसमें माया, निदान और मिथ्यादर्शन-इन तीन शल्यों से रहित व्यक्ति को व्रती कहा गया है / साथ ही यह भी बताया गया है कि व्रती के दो रूप हैं-आगारी और अनगारी। इन्हें क्रमशः श्रावक और श्रमण भी कहा गया है। व्रात्य शब्द का अर्थ व्रती शब्द की तरह ही है / इसका अर्थ है-व्रतों का पालन करने वाला। अथर्ववेद में एक व्रात्यकाण्ड है जिसमें व्रात्य को विद्वत्तम, महाधिकारी, पुण्यशील, विश्व-सन्मान्य और ब्राह्मण-विशिष्ट कहा गया है। मनुस्मृति एवं प्रश्नोपनिषद में भी व्रात्य शब्द का प्रयोग हुआ है। 1. जैन, हीरालाल-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० 18 2. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 24 / 12 (ख) पिंडनियुक्ति, 124 (ग) भत्तपइण्णा पइण्मयं, गाथा 12 3. जैन लक्षणावली, भाग 3, पृष्ठ 941 4. दशवकालिकचूर्णि, पृ० 233; उद्धृत-निरुक्त कोश-सम्पा० युवाचार्य महाप्रज्ञ, पृष्ठ 110 5. बृहद्कल्पटीका, पृष्ठ 63; उद्धृत-निरुक्त कोश-सम्पा० युवाचार्य महाप्रज्ञ, पृष्ठ 111 6. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 13-14 7. अथर्ववेद, सायणभाष्य, 15.1.1.1; उद्धृत-भास्कर, भागचन्द जैनदर्शन और संस्कृति का इतिहास, पृष्ठ 12 8. मनुस्मृति, 2 / 39 9. प्रश्नोपनिषद, 2011
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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