________________ विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन संबंधी मान्यताएं : 123 दिगम्बर जैन आचार्यों ने सात तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।' नौ तत्व निम्न रूप से प्रतिपादित किये गये हैं 1. जीव तत्व-चेतन सत्ता जीव तत्त्व है। 2. अजीव तत्त्व-जड़ सत्ता या भौतिक तत्त्व (इसमें कर्म पुद्गल भो समाविष्ट हैं) अजीव तत्त्व है। 3. आस्रव तत्त्व-जीव की शारीरिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप कर्म वर्गणाओं के पुद्गलों का आत्मा को ओर आना आस्रव तत्त्व है। 4. संवर तस्व-जीव के मन, वचन और काया की क्रियाओं के संयमन अथवा निरोध से कर्म वर्गणाओं के पुद्गलों का आत्मा की ओर आना रुक जाना संवर है। . 5. निर्जरा तस्व-कर्मवर्गणा के पुद्गलों का आत्मा से अलग होना निर्जरा है। जब कर्मवर्गणा के पुद्गल अपना फल देकर आत्मा से अलग होते हैं तो वह प्रक्रिया सविपाक निर्जरा कहलातो है, किन्तु जब तप आदि के माध्यम से कर्मवर्गणा के पुद्गल अपने स्वाभाविक विपाक के पूर्व हो आत्मा से विलग कर दिए जाते हैं तो वह अवस्था अविपाक निर्जरा कहलाती है। ६.पण्य तत्व-जीव की वे क्रियाएँ जो प्रशस्त होती हैं और जिनके कारण प्रशस्त कर्मवर्गणाओं का आस्रव या बन्ध होता है तथा जो अपने विपाक में सुख प्रदान करतो हैं, वे पुण्य कहो जाती हैं। 7. पाप तत्त्व-जीव को वे क्रियाएँ जो अप्रशस्त कर्मवर्गणाओं के पुद्गलों का आस्रव करती हैं तथा जिनके कारण अशुभ कर्म का बन्ध .होता है और जिसका परिणाम भी दुःखद होता है, वे पाप कहो जाती हैं / . 8. बन्ध तत्त्व-आत्मा का कर्मवर्गणाओं से संशलिष्ट होना हो बन्ध है। बन्ध हमारे सांसारिक अस्तित्व का मूलभूत कारण है। 9. मोक्ष तत्त्व-समस्त कर्ममल निर्जरित हो जाने पर आत्मा को जो शुद्ध-स्वाभाविक दशा होतो है, वही मोक्ष है। ... श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य प्राचीन आगम साहित्य में सामान्य . रूप से नौ तत्त्वों का ही उल्लेख पाया जाता है। इसके विपरीत दिगम्बर. 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र, 13 (ख) तत्त्वार्थसूत्र, 14