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________________ 65 : चतुःशरण प्रकीर्णक (20) जिनदेवों के गुणों के प्रत्कर्ष का, धर्म कथा रूप परोपकार का तथा मोह पर विजय प्राप्त करने वाले ज्ञान का मैं त्रिविध रूप से अनुमोदन करता हूँ। (21) सभी कर्मों के क्षय होने से सिद्धों के सिद्धभाव, सुख भाव और ज्ञान, दर्शन रूप स्वभाव का मैं त्रिविध रूप से अनुमोदन करता हूँ। (22) आचार्यों के पांच प्रकार के आचार का, उनकी जन-कल्याण मूलक वृत्ति का तथा उनके आगमिक विवेचन का मैं त्रिविध रूप से अनुमोदन करता हूँ। (23) उपाध्यायों की अध्ययन वृत्ति का, आगम ज्ञान के द्वारा मोक्ष मार्ग के निर्देशन का तथा उनकी उपकारी वृत्ति का मैं त्रिविध रूप से अनुमोदन करता हूँ। (24) साधुओं की शुभ क्रिया का, उनके द्वारा उपदिष्ट मोक्ष रूपी सुख के साधनभूत अनेक उपायों का तथा उनके समभाव में भावित रहने का मैं त्रिविध रूप से अनुमोदन करता हूँ। (25) श्रावकजनों की सम्यक् वचन ग्राह्यता, धर्म श्रवणता आदि अन्य सभी धार्मिक क्रियाओं की मैं अनुमोदना करता हूँ। (26) अन्य सभी भव्य जीवों के शुभ कर्मो का और उनकी मोक्ष मार्ग रूपी क्रियाओं का मैं सर्वथा प्रकार से अनुमोदन करता हूँ / (उपसंहार) (27) यह चतुःशरण जिसके मन में सदाकाल स्थित रहता है, वह इस लोक और परलोक दोनों का अतिक्रमणकर कल्याण प्राप्त करता है। ( चतुःशरण प्रकीर्णक समाप्त )
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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