________________ मुस्कराते होठ, ये थे आपके बाह्य सद्गुण, जो सजह ही किसी को भी आपकी ओर आकर्षित कर लेते थे। अतिथि सत्कार, संत महापुरूषों, महासतियों की सेवा में आप सदैव अग्रणी रहती थी। सामायिक, स्वाध्याय के प्रति आपकी गहरी रूचि थी। सहनशीलता की आप जीवन्त प्रतिमा थी तथा सदैव प्रभू भक्ति में लीन रहती थी। सेवा एवं स्वधर्मी वात्सल्य प्रारंभ से ही आपके जीवन के अभिन्न अंग रहे। आपके धर्म परायण व्यक्तित्व एवं सेवाभावी जीवन का प्रभाव आपके पूरे परिवार में परिलक्षित होता है। आपके दोनों पुत्र श्री महेन्द्र जी एवं श्री विजय जी तथा दोनों पुत्रियाँ श्रीमती सम्पत देवी एवं श्रीमती प्रेमलता भी लोक कल्याणकारी विविध प्रवृतियों में सहयोग हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। . 16 जनवरी 1997 को आप घर - परिवार एवं समस्त आत्मीय जनों को शोक संतप्त छोड़कर अनन्त में विलीन हो गई। यद्यपि आदर्श महिला श्री रतनीदेवीजी आज देह रूप में हमारे मध्य में नहीं है तथापि उनका व्यक्तिगत जीवन और उनके द्वारा स्थापित एवं संचालित विविध लोकोपकारी प्रवृत्तियां हमें बार - बार उनका स्मरण कराती हैं। लाडनूं में गौ - शाला का निर्माण, सुजानगढ़ में पंचायत सभागार का निर्माण तथा कलकत्ता - हावड़ा के जैन हॉस्पिटल में बाल निदान केन्द्र का निर्माण आदि कल्याणकारी प्रवृत्तियाँ आपकी * स्मृति को सदैव जीवन्त बनाये हुये हैं। सरदारमल कांकरिया