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________________ 53 : चतुःशरण प्रकीर्णक दुष्कृत गर्हा ) (49) चतुःशरण ग्रहण करने वाला, अच्छे आचरण द्वारा शरीर में रोमांच उत्पन्न करने वाला तथा दुष्कृत की गर्दा (निंदा) करने वाला व्यक्ति अशुभ कर्मो का क्षय करने वाला कहा गया है। (50) इस भव और पर भव में मिथ्यात्व की प्ररूपणा करने वाले, पापजनक क्रिया करने वाले, जिनवचन के प्रतिकूल आचरण करने वाले दुष्टजनों की तथा उनके पापों की मैं गर्दा (निंदा) करता हूँ। (51) मिथ्यात्व और अज्ञान से अरहंत आदि के प्रति जो निन्दनीय वचन मैंने कहे हैं तथा अज्ञान के द्वारा जो कुछ मेरे द्वारा किया गया है, उन सभी पापों की मैं इस समय गर्दा करता हूँ। (52) श्रुत, धर्म, संघ और साधुओं के प्रति जो पाप और प्रतिकूल आचरण मैंने किये हैं, उनकी और अन्य दूसरे सभी पापों की मैं इस समय गर्दा (निन्दा) करता हूँ। (53) दूसरे जीवों के प्रति मैत्री और करूणा रखते हुए भी गोचरी (भिक्षाचर्या) में मैंने जीवों को जो परिताप एवं दुःख पहुंचाया है, उन पापों की मैं इस समय गर्दा ( निन्दा ) करता हूँ।
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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