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________________ भूमिका : 27 हूँ / इष्ट शरीर, कुटुम्ब, उपकरण और जीवों के उपघात की जनक जो भी मनोवृतियाँ उत्पन्न हुई हैं, उन सबकी मैं निंदा करता हूँ। अनवरत पापकर्मो में आसक्त रहने के कारण जन्म-मरण के निमित्त से शरीर का ग्रहण और परित्याग करते हुए मैं जो पापों में आसक्त हुआ हूँ तो उसका त्रिविध रुप से परित्याग करता हूँ। आगे ग्रन्थकार कहता है कि लोभ, मोह और अज्ञान के द्वारा सम्पत्ति को प्राप्त कर तथा उसे धारण कर जिस अशुभ स्थान को मैंने प्राप्त किया है उसको मन, वचन एवं काया के द्वारा त्यागता हूँ। जो गृह, कुटुम्ब और स्वजन मेरे हृदय को अतिप्रिय रहे किन्तु फिर भी मुझे उनका परित्याग करना पडा, उन सभी के प्रति अपने ममत्व का परित्याग करता हूँ। आगे ग्रन्थकार कहता है कि हल, ऊँखल, शस्त्र, यंत्र आदि का इन्द्रियों के द्वारा रतिपूर्वक परिभोग किया हो, मिथ्यात्व भाव से कुशास्त्रों, पापीजनों और दुराग्रहियों को उत्पन्न किया हो तो उन सबकी मैं लोक में निन्दा करता हूँ। अज्ञान, प्रमाद, अवगुण, मूर्खता और पापबुद्धि के द्वारा अन्य जो कुछ भी पाप कर्म मैंने किये हों, उन सबका त्रिविध रूप से मैं प्रतिक्रमण करता हूँ (7-10) / ... दुष्कृत गर्दा के पश्चात् सुकृत अनुमोदना की चर्चा करते हुए ग्रन्थकार कहता है कि देह, स्वजन, व्यापार, धन-सम्पत्ति तथा ज्ञान और कौशल इनका जो उपयोग सद्धर्म में हुआ हो तो उन सबका मैं अनुमोदन करता हूँ। आगे ग्रन्थकार कहता है कि उत्तम संतदेशना सुनी हो, जीवों को सुख पहुंचाया हो तथा और भी जो कुछ सद्धर्म किया हो, उन सबका मैं त्रिविध रूप से बहुमान करता हूँ। धर्मकथा के द्वारा परोपकार करने वाले, ज्ञान के द्वारा मोह को जीतने वाले, गुणों के प्रकाशक जिन भगवान् की त्रिविध रूप से मैं अनुमोदना करता हूँ। दर्शन, ज्ञान और चारित्र के द्वारा सभी कर्मो के क्षय से शुभभाव और सिद्धों के सिद्ध भाव की त्रिविध रूप से मैं अनुमोदना करता हूँ। तत्पश्चात् आगे की गाथाओं में आचार्य,
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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