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________________ 24 : चउसरणपइण्णयं (30-39) / साधुओं की चर्चा के प्रसंग में ही आगे एक गाथा में यह भी कहा गया है कि वे ही साधु उत्तम हैं जो आचार्यों को भी सम्यक् रूप से स्थिर रखते हैं। ग्रंथकार ने यहाँ इसी रूप में साधु शब्द का अर्थ ग्रहित किया है और ऐसे साधुओं की ही शरण में जाने का कथन किया है (40) / केवलि प्ररूपित धर्म की शरण अंगीकार करने हेतु ग्रन्थकार कहता है कि मैं साधु शरण अंगीकार कर जिनधर्म की शरण में जाता हूँ। यह जिनधर्म निश्चय ही आनन्द, रोमांच, प्रपंच और कंचुक आदि को कृश करने वाला है। ग्रन्थकार आगे यह भी कहता है कि जिसके द्वारा मनुष्य और देवताओं के सुखों को प्राप्त कर लिया गया है, वह सुख मुझे प्राप्त हो या न हो, किन्तु मैं मोक्ष सुख प्राप्त कराने वाले जिनधर्म की शरण में जाता हूँ / तदुपरान्त जिनधर्म को पापकर्मो को गलाने वाला, शुभ कर्म उत्पन्न कराने वाला, कुकर्मो का तिरस्कार करने वाला, जन्म-जरा-मरण और व्याधि आदि में साथ रहने वाला, काम और प्रमोद को शांत करने वाला, जाने-अनजाने में वैर-विरोध नहीं कराने वाला, मोक्ष दिलाने वाला, नरकगति में जाने से रोकने वाला, कामरूपी योद्धा को मारने वाला तथा दुर्गति को हरण करने वाला कहा गया है (4148) / ___ चारशरण की चर्चा करने के पश्चात ग्रन्थकार दुष्कृत की गर्दा के प्रसंग में कहता है कि दुष्कृत की गर्दा करने वाला अशुभ कर्मों का क्षय करता है। ग्रन्थकार यह भी कहता है कि इस भव और परभव में मिथ्यात्व की प्ररूपणा करने वाले, पापजनक क्रिया करने वाले, जिनवचन के प्रतिकूल आचरण करने वालों की तथा उनके पापों की मैं गर्दा अर्थात् निंदा करता हूँ। (49-50) / आगे की गाथाओं में ग्रन्थकार कहता है कि मिथ्यात्व और अज्ञान से अरहंत आदि के प्रति जो निन्दनीय वचन मैंने कहे हैं तथा अज्ञान के द्वारा जो कुछ मैंने कहा है, उन सब पापों की मैं
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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