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________________ संपादकीय जिनशासनना महान ज्योतिर्थर, सुविशाल सुविहितमुनिगणगच्छाधिपति, संघस्थविर, संघसन्मार्गदेशक, संघपरमहितेषी, व्याख्यानवाचस्पति, सच्चारित्रसुपवित्रगात्र, पूज्यपाद, आचार्यदेव - श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना दिव्य आशीर्वादथी तेओश्रीना पट्टालंकार, सिंहगर्जनाना स्वामी, स्व. पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय मुक्तिचन्द्रसूरीश्वरजीमहाराजानापट्टालंकारशासनप्रभावक, प्रशमरसपयोनिधि, पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय जयकुंजरसूरीश्वरजी महाराजानु वि.सं.२०५१नुंचातुर्मास मुंबई-लालबाग-रामबागमां थयु ते दरम्यान मारा वडिल बन्धु सिद्धहस्त लेखक पू.आ. भ. श्रीमद् विजय पूर्णचन्द्रसूरीश्वजी महाराजाओमने जणाव्यु के 'सुरत तपच्छ रत्नत्रयी आराधक संघ-ट्रस्ट'नी भावना छे के तेओना ट्रस्टमाथी ज्ञानखातानो सदुपयोग याय ते रीते प्राचिन ग्रन्यरत्नो झेरोक्ष-ओफसेट द्वारा पुनर्मुद्रित थई प्रगट थाय तो जे ग्रन्यो आजे अप्राप्त छे ते अर्वाचिन ज्ञानभंडारोने उपलब्ध बनी रहे ने . प्राचिन साहित्य वारसो आपणा ज्ञान-भंडारोमा अकबंध जलवाई रहे. सुरत तपगच्छ रत्नत्रयी आराधक संपनी भावनाने लक्ष्यमा लई सेवाभावी सुश्रावकमोहनलालजमनादासनासहयोगयीप्राच्यसाहित्यपुनःप्रकाशन श्रेणी-ग्रन्यांक 7 रुपे आ ग्रन्य प्रकाशित थई रहयो छे ते अनुमोदनीय छे. प्रत्येक संघो अन्ने प्रत्येक ट्रस्टो जो प्राचीन साहित्यना पुनरुध्धारमा रस लेता थई जाय तो जैनशासननो अमूल्य प्राच्यसाहित्य वारसो चिरंजीव बनी रहे ने ज्ञानद्रव्यनो खुब ज सुंदर सदुपयोग यतो रहे. सिंधी जेन ग्रंथमालाना सौजन्यपूर्वक आजे आ ग्रन्य प्रगट यई रहयो छे ते बदल ट्रस्टना ट्रस्टीओ ग्रंथमालाना ऋणी छे सुरत तपगच्छ रत्नत्रयी संघ ट्रस्ट प्रत्येक वर्षे ज्ञानोपासनानुं आईं शुभकार्य करी अनेक ट्रस्टोने ज्ञानोपासनानो आदर्श पूरो पाडे ओज शुभाभिलाषा - आ. विजय मुक्तिप्रभसूरि मोतीशा लालबाग जैन उपाश्रय पांजरापोल लेन, भुलेश्वर, मुंबई-४०० 004.
SR No.004294
Book TitleKumarpal Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhsuri
PublisherSinghi Jain Shastra Shikshapith
Publication Year1956
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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