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________________ कुमारपाल चरित्र संग्रह-प्रस्तावनादि वक्तव्य कर्ताका नाम यशःपाल है। कुमारपाल राजाकी मृत्युके बाद, उसके राज्यका खामी जो अजयपाल हुआ था, उस का यह एक प्रधान था / इस 'मोहपराजय' नाटकमें, कुमारपाल राजाके साथ, धर्मराज और विरतिदेवी की पुत्री कृपासुन्दरी का पाणिग्रहण, तीर्थंकर महावीर और आचार्य हेमचंद्रकी सन्मुख, कराया गया है। जैन धर्मकी इस . बढी भारी विजय की मिति संवत् 1216 के मार्गशीर्ष मासकी शुक्ल द्वितीया है-अर्थात् ईवीसन् 1960 में, कुमारपाल राजाने प्रकट रूपसे जैन धर्मका स्वीकार किया था / इस तारीखके निश्चयमें संशयित होनेका कोई मी .. कारण नहीं है, क्यों कि यह पुस्तक ईखीसन् 1173 से 1176 के बीचमें-अर्थात् इस उपर्युक्त तारीखके बाद 16 वर्षके अंदर ही लिखी हुई होनी चाहिए।" 3. प्रबंधचिंतामणि, मेरुतुंगाचार्यकृत / यह ग्रंथ बहुत अच्छा है। संस्कृत भाषामें, गद्यमें, इस की रचना की गई है। इसमें अनेक ऐतिहासिक घटनाओंका उल्लेख है / राजतरंगिणीके ढंग पर लिखा हुआ है। . आधुनिक पाश्चात्य विद्वानोंने इस ग्रंथको अन्य सब ऐतिहासिक लेखोंसे, अधिक विश्वसनीय माना है / गुजरातके इतिहासके लिए तो केवल यही एक आधारभूत ग्रंथ है। इसका इंग्रेजीमें अनुवाद करा कर, बंगालकी 'रॉयल एशियाटिक सोसाइटी'ने प्रकट किया है / इसके अंतमें कुमारपाल व हेमचंद्राचार्यका विस्तृत वर्णन है / संवत् 1361 के फाल्गुन मासकी शुक्ल पूर्णिमाको, काठीयावाडके प्रसिद्ध नगर 'वढवाण में इसकी समाप्ति हुई थी। 4. प्रभावकचरित्र, प्रभाचंद्राचार्यकृत / इस ग्रंथमें, जगत्में जैन धर्मकी प्रभावना करने वाले अनेक प्रभावक पूर्वर्पियोंके जीवन चरित्र हैं। सारा ग्रन्थ संस्कृत पद्यमय है / कविता बडी रमणीय है / संस्कृत-साहित्यके प्रेमियोंको ' अवश्य अवलोकन करने लायक है। इसमें पूर्व कालके 23 जैन महात्माओंका वर्णन है। अंतमें हेमचंद्राचार्यका भी विस्तारसे उल्लेख है। 5. कुमारपालचरित्र, जयसिंहसूरिरचित / 6. कुमारपालचरित, श्रीसोमतिलकसूरिकृत / 7. कुमारपालचरित्र, श्रीचारित्रसुंदरकृत। 8. कुमारपालचरित्र, हरिश्चंद्रकृत (प्राकृत!)। 9. चतुर्विशतिप्रबंध, श्रीराजशेखरसूरिकृत / 10. कुमारपालरास (गुजराती) श्रीजिनहर्ष कृत। 11. कुमारपालरास (गुजराती) श्रावक ऋषभदास रचित / इन पुस्तकोंके अतिरिक्त 'विविधतीर्थकल्प' 'उपदेशतरंगिणी' तथा 'उपदेशप्रासाद' आदि बहुतसे अन्य ग्रंथों में मी इन महापुरुषोंका वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ-गणनामें हमें अभी एक और महत्ववाले ग्रंथका नाम लिखना बाकी है-जो कि इस प्रस्तुत चरित्र का मूलभूत है। इसका नाम है 'कुमारपालप्रबंध' / संवत् 1499 में, तपगच्छाचार्य महाप्रभावक श्रीसोमसुंदरसूरीश्वरजीके सुशिष्य श्रीजिनमंडन गणिने इसकी रचना की है। सारा ग्रंथ सरल और सरस संस्कृतमय है। गद्य और पद्यसे मिश्रित है। बीच-बीच में प्राकृत पद्य भी प्रसंगवश उद्धृत किए गए हैं। इस ग्रंथका चरित्रात्मक भाग, केवल कविकी कल्पना मात्र है, ऐसा नहीं है; परंतु यथार्थ ऐतिहासिक घटना खरूप है / इसका प्रमाण पाठकोंको इससे मिल सकेगा कि, इस चरित्रको विश्वसनीय और उपयोगी समझ कर, बडौदाके विद्याविलासी नृपति श्रीसयाजीराव महाराजने, पारितोषिक दे कर, विद्वान् श्रावक श्रीयुत मगनलाल चूनिलाल वैद्य (बडौदा) द्वारा, गुजराती भाषामे अनुवाद करा कर, राज्यकी तर्फसे छपवा कर प्रकाशित किया है। इस पुस्तकमें गुजरातके इतिहासकी बहुतसी उपयोगी बाते हैं। अणहिलपुर-पाटन नगरकी स्थापना (विक्रम संवत् 802) से ले कर कुमारपाल राजा (सं. 1230) पर्यंतकी गुर्जरराज्यप्रवृत्ति विगेरे इसमें संक्षिप्तसे वर्णन की गई है। सिद्धराज जयसिंहका, बंगालके महोबकपुर (महोत्सवपुर) के राजा मदनवर्माके साथ, समागम होनेका उल्लेख इसी ग्रंथमें मिलता है, जो बात, जनरल
SR No.004294
Book TitleKumarpal Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhsuri
PublisherSinghi Jain Shastra Shikshapith
Publication Year1956
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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