________________ 22 नीतिवाक्यामृतम् . विचार तर्क के द्वारा करता है, दुःख आ पड़ने पर दुःखी नहीं होता, अभ्युदय होने पर उन्मत्त नहीं होता और बुद्धिकोशल तथा बाक्चातुर्य प्राप्त करता है। (त्रयीं पठन् वर्णाचारेष्वतीव प्रगल्भते , जानाति च समस्तामपि धर्मस्थितिम् / / 57 // त्रयी का अध्ययन करनेवाला व्यक्ति ब्राह्मणादि चारों वर्गों के आचारव्यवहार में बहुत पटु हो जाता है और धर्म तथा अधर्म की स्थिति को जान जाता है। ___ युक्तितः प्रवर्तयन् वार्ता सर्वमपि जीवलोकमभिनन्दयति, लभते च स्वयं सर्वानपि कामान् // 58 // ___वार्ता विद्या का युक्ति-पूर्वक प्रयोग करनेवाला व्यक्ति समस्त जनवर्ग को आनन्दित करता है और स्वयं भी सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त करता है। दण्डनीति की प्रशंसा(यम इवापराधिषु दण्डप्रणयनेन विद्यमाने राज्ञि न प्रजाः स्वमर्यादा. मतिकामन्ति, प्रसीदन्ति च त्रिवर्गफला विभूतयः / / 56 / / अपराधियों के लिये यमराज के समान दण्ड का विधान करनेवाले राजा के वर्तमान रहने पर प्रजा अपनी मर्यादा का उल्लङ्घन नहीं कर पाती और राजा को धर्म, अर्थ और काम इन तीनों का ऐश्वर्यभोग प्राप्त होता है। आन्वीक्षिकी आदि विद्याओं का उपयोग(आन्वीक्षिक्यध्यात्मविषये, त्रयी वेदयज्ञादिषु, वार्ता कृषिकर्मादिका, दण्डनीतिः साधुपालनं दुष्टनिग्रहः / / 60 // ) अध्यात्म-विषय में आन्वीक्षिकी, वेद यज्ञ आदि के विषय में त्रयी दिवा शोर कृषि कर्म आदि के सम्बन्ध में वार्ता विद्या तथा साधुजनों का पालन और दुष्टों का दमन करने में दण्डनीति काम आती है / - विद्या के लाभघेतयते च विद्या वृद्धसेवायाम् / / 61 / / विद्या वृद्धसेवा में प्रवृत्त करती है। (अजातविद्यावृद्धसंयोगो हि राजा निरङ्कुशो गज इव सद्यो विनश्यति / / 62 / / ) विद्या और वृद्धसंयोग से वञ्चित राजा निरंकुश हाथी के समान शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है। (अनधीयानोऽपि विशिष्टजनसंसर्गात्परां व्युत्पत्तिमवाप्नोति / / 63 / / विद्याओं का अध्ययन न करता हुआ भी राजा विशिष्ट व्यक्तियों के संसर्ग से उत्कृष्ट कोटि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।