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________________ नीतिवाक्यामृतम् (वर्णपदवाक्यप्रमाणप्रयोगनिष्णातमतिः सुमुखः सुव्यक्तो मधुरगम्भीरध्वनिः, प्रगल्भः, प्रतिभावान् सम्यगृहापोहावधारणागमशक्तिसम्पन्नः, संप्रज्ञातसमस्तलिपिभाषावर्णाश्रमसमयस्वपरव्यवहारस्थितिराशुलेलेखनवाचनसमर्थश्चेति सान्धिविग्रहिकगुणाः // 2 // .. वर्ण पद वाक्य अर्थात् व्याकरण और प्रमाण अर्थात् तर्कशास्त्र के प्रयोग में कुशल बुद्धि, स्पष्ट अक्षर बोलनेवाला स्पष्ट अर्थवाले वाक्यों को प्रयोग करने वाला, मधुर और गम्भीर ध्वनिवाला, धृष्ट, प्रतिभाशाली, अच्छी तरह तर्कवितर्क करने में कुशल, और विनयी तथा समस्याओं को निश्चयात्मक रूप में . जानकर प्रमाण देने में समर्थ, समस्त लिपि, भाषा, चारों वर्गों के आचारविचार, समयागम (दर्शन-शास्त्र) और अपने तथा पराये से व्यवहार में कुशल शीघ्र लिखने-पढ़ने में समर्थ व्यक्ति सन्धिविग्रहिक सन्धि और युद्ध के विषय में परामर्श दाता है अर्थात् महामात्य अथवा राज्यमन्त्री उपयुक्त गुणों से युक्त होना चाहिए। (कथाव्यवच्छेदो, व्याकुलत्वं, मुखे वैरस्यम् , अनवेक्षणं, स्थानत्यागः, साध्वाचरितेऽपि दोषोद्भावनं, विज्ञप्ते च मौनम् , अक्षमाकालयापनम् , अदर्शनं, वृथाभ्युपगमश्चेति विरक्तलिङ्गानि // 3 // , ____ जो पुरुष अपने प्रति विरक्त हो उसके यह लक्षण होते हैं-कपा भंग करना, अर्थात् चलती हुई बातचीत को बीच से काट देना या न सुनना, ज्याकु लता, मुख पर माहाद का अभाव, सामने न देखना, स्थान चोड़कर चले ‘जाना, अच्छे कामों में भी दोष निकालना, कुछ प्रश्न करने पर मौन हो जाना, उत्तर देने में असमर्थ होकर व्यर्थ समय बिताना, मुंह न दिखाना और -पात स्वीकार करके उसे पूरा न करना।) . दूरादेवेक्षणं, मुखग्रसादः, सम्प्रश्नेष्वादरः, प्रियेषु वस्तुषु स्मरण, परोक्षे गुणग्रहणं, तत्परिवारस्य सदानुवृत्तिरित्यनुरक्तलिगानि // 4 // ___ अपने प्रति श्रद्धालु और अनुरागी व्यक्ति में-दूर से ही देखने लगना, देखते ही मुख पर आह्वाद का होना, प्रश्न करने पर बड़े आदर के साथ सुनना और उत्तर देना अपने लिये की गई प्रिय बातों का स्मरण करते रहना, पीठ पीछे गुणों का वर्णन आदि करना, और सदा उसके परिवार वालों के अनुकूल व्यवहार करना-ये लक्षण होते हैं) (अतिसुखत्वम् , अपूर्वाविरुद्धार्थातिशययुक्तत्वम् , उभयालङ्कारसम्पन्नत्वम् , अन्यूनाधिकवचनत्वम् , अतिव्यक्तान्वयत्वम् , इति काव्यस्य गुणाः // 5 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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