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________________ 176 नीतिवाक्यामृतम नदी में बहे जाते हुए मनुष्य के लिये तट पर पुरुष का दिखलाई पड़ना भी उसके जीवन का कारण होता है / / (निरन्नमपि सप्राणमेव बलं यदि जलं लभेत // 23 // . यदि जल मिलता रहें तो अन्नहीन भी सेना जीवित रह सकती हैं। (आत्मशक्तिमविज्ञायोत्साहः शिरसा पर्वतभेदनमिव / / 24 / / ) अपनी शक्ति का अनुमान किये विना सबल शत्रु से युद्ध के लिये उत्सा. हित होना पर्वत से टक्कर लेकर शिर फोड़ने के तुल्य हैं। (सामसाध्यं युद्धसाध्यं न कुर्यात् / / 25 // ) शान्तिमय उपायों से सिद्ध हो सकने वाले कार्यों को युद्धसाध्य नहीं करना चाहिए। (गुडादभिप्रेतसिद्धौ को नाम विषं भुञ्जीत // 16 // जब गुड खाने से ही मनोरथ पूर्ण होता हो तो विष कोन खायेगा / (अल्पव्ययभयात् सर्वनाशं करोति मुर्खः / / 27 // मूर्ख व्यक्ति थोड़े से व्यय के भय से अपना सर्वनाश कर बैठता है / अर्थात् वह राजा मूर्ख है जो किसी बली शत्रु राजा द्वारा कोई क्षुद्र वस्तु या प्रदेश मांगने पर उसे नहीं देता और परिणाम स्वरूप उस बलवान् व्यक्ति के क्रूद्ध होने पर अपना सब कुछ खो देता है। (कोनाम कृतघीःशुल्क-भयाद् भाण्डं परित्यजति || 28 // कोन बुद्धिमान् शुल्क ( चुङ्गी ) देने के डर से अपने व्यापारी माल की गाँठ त्याग देता है ? ____स किं व्ययो यो महान्तम् अर्थ रक्षति // 26 // वह व्यय क्या व्यय कहा जायगा जिससे महान् अर्थराशि नष्ट होने से बचाई जा सके / प्रसंग के अनुकूल इसका अभिप्राय यह है कि यदि किसी अत्यन्त बलशाली देश से अपने राज्य की रक्षा के निमित्त शत्रु राजा के आगत-स्वागत में कुछ खर्च करने से जिससे कि वह प्रसन्न होकर आक्रमण आदि न करे तों वैसा आगत-स्वागत सम्बन्धी व्यय व्यर्थ व्यय नहीं हैं। (पूर्णसरः सलिलस्य हि न परीवाहादपरोऽस्ति रक्षणोपायः // 30 // माली बना कर तालाब के बढ़े हुए पानी को बहा देने के अतिरिक्त तालाब की सुरक्षा का दूसरा उपाय नहीं होता। (अप्रयच्छतो बलवान् प्राणैः सहाथै गृह्णाति / / 31 // बलवान् शत्रु की याचना पर जो अर्थ दान नहीं देता उसका धन या राज्य वह बलवान शत्रु उसके प्राणों के साथ ले लेता है।) बलवति सीमाधिपेऽर्थ प्रयच्छन् विवाहोत्सवगृहगमनादिभिषेण प्रयच्छेत् / / 32 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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