________________ विवादसमुद्देशः, णिकता अप्रामाणिकता के आधार पर सत्य का निर्णय करना चाहिए अथवा शपथ ग्रहण अथवा दण्ड के द्वारा सत्य का निर्णय करना चाहिए।) यादृशे तादृशे वा साक्षिणि नास्ति दैवी क्रिया किं पुनरुभयसम्मते मनुष्ये नीचेऽपि // 15 // __ जब कि जैसे-तैसे अर्थात् साधारण. अथवा मिकृष्ट चरित्र के गवाह से शपथ नहीं कराई जाती तब वादी और प्रतिवादी दोनों से सम्मत नीच गवाह से शपथ कैसे कराई जावगी। यः परद्रव्यमभियुञ्जीताभिलुम्पते वा तस्य शपथः क्रोशो दिव्यं वा॥ 16 // जो कोई दूजरे का द्रव्य अपहरण कर ले अथवा नष्ट करदे तो उस विवाद में शपथ, कुड़की अथवा दण्ड का भय दिखाकर निर्णय करना चाहिए। . (अभिचारयोगैर्विशुद्धस्याभियुक्तार्थसंभावनायां प्राणावशेषोऽर्थापहारः // 17 // ___ शपथ आदि प्रयोगों के द्वारा अपने को निर्दोष सिद्ध करनेवाले व्यक्ति का अपराध यदि पुनः सिद्ध हो तो उसके प्राणों को छोडकर उसका शेष समस्त धन राजा को ग्रहण कर लेना चाहिए। (लिङ्गिनास्तिकस्वाचाराच्च्युतपतितानां देवी क्रिया नास्ति // 18 // संन्यासी, वैरागी आदि चिह्नधारी, नास्तिक और अपने आचार से भ्रष्ट तथा पतित पुरुषों के वाद-विवाद के निर्णय में शपथ क्रिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ये झूठी शपथ भी ले लेते हैं।) ( तेषां युक्तितोऽर्थसिद्धिरसिद्धिर्वा // 16 // ) .. उनके विवाद का निर्णय युक्तियों द्वारा करके उनको दोषी अथवा निर्दोष ठहरावे। सन्दिग्धे पत्रे साक्ष्ये वा विचार्य परिच्छिन्द्यात् // 20 // दस्तावेज आदि शासकीय अभिलेख अपवा गवाह जब सन्दिग्ध हों तब बहुत विचारपूर्वक निर्णय करना चाहिए / परस्परविवादे न युगैरपि विवादसमाप्तिरानन्त्याद् विपरीतप्रत्युक्तीनाम् / / 21 // वादी प्रतिवादी यदि स्वयं ही तर्क-वितर्क (बहस ) करने लगे तो प्रश्नों और उत्तरों तषा युक्तियों की पनन्तता के कारण युगों तक अभियोग का निर्णय नहीं हो सकता अतः धर्माधिकारी अथवा वकीलों के माध्यम से विवाद का निर्णय करना चाहिए।