________________ परिशिष्ट-९ दो शब्दों का अर्थभेद भाष्यकार और चूर्णिकार ने प्रसंगवश दो शब्दों में होने वाले अर्थभेद को प्रकट किया ... है। भाषाविज्ञान के क्षेत्र में शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह परिशिष्ट अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होगा। जीव और प्राण * जीव त्ति पाणधरणे, पाणा पुण आउमादि णिद्दिट्ठा। अहवा जीवति जीविस्सई य जीवं ति होति जिओ॥ (गा.७०४) भक्ति और बहुमान * भत्ती होतुवयारो, बहुमाणो गोरवसिणेहो। (गा.१००३) * भत्ती उवयारमेत्तं, बहुमाणो ओरसो। (जीचू पृ. 12) कर्म और शिल्प * जंतुप्पीलणमादि तु, कम्मं तुण्णादियं सिप्पं / (गा. 1358). वत्त और अणुवत्त * वत्तो णामं एक्कसि, अणुवत्तो जो पुणो बितियवारे। (गा.६७६) विद्या और मंत्र * विज्जा-मंतविसेसो, विज्जित्थी पुरिस होति मंतो तु। अहव ससाहण विज्जा, मंतो पुण पढितसिद्धो तु॥ (गा. 1438) . मुदित और राजा * मुदितो जो होति जोणिसुद्धो तु। अभिसित्तो व परेहिं, सयं व भरहो जहा राया॥ (गा. 1999) शयन और आसन * सयणं जत्थ सुप्पइ, आसणं जत्थ निविसिज्जइ। (जीचूपृ. 11) अवम (दुष्काल) और दुर्भिक्ष * ओमं परिपूर्णे यत्र भक्तादि न लभ्यते। * दुर्भिक्षं यत्र सर्वथा न लभ्यते। (जीचूवि पृ.५४) 1. यत्र मंत्रे देवता स्त्री सा विद्या, अम्बाकुष्माण्ड्यादि। यत्र तु देवता पुरुषः स मंत्र, यथा विद्याराजः, हरिणेगमेषिरित्यादि। (आवहाटी 1 पृ. 274)