________________ कथाएं : परि-२ 613 जाएगा। हमारी भी आम खाने की इच्छा है लेकिन आपके भय से हम ऐसा नहीं कर सके। यदि आम कल्प्य है तो आपने इतना समय बीतने पर क्यों कहा? क्या आम के साथ दूसरे फल भी लेकर आ जाऊं?" आचार्य ने अपरिणामक और अतिपरिणामक शिष्य को कहा—'तुम लोगों ने मेरे कथन के अभिप्राय को नहीं समझा। मैंने अपनी बात पूरी नहीं की, इससे पूर्व ही तुम लोग बोलने लगे। मैंने लवणयुक्त आम के टुकड़े मंगवाए थे, जो शाक रूप में पकाए हुए हों तथा परिणत हों। यदि मैं निष्पाव, कोद्रव आदि मंगवाता हूं तो उसका तात्पर्य भी सूखे और अचित्त से है। ईमली के बीज मंगवाने का तात्पर्य भी अचित्त बीजों से है, सचित्त से नहीं।' 55. प्रतिक्रमण : रसायन दष्टान्त एक राजा को राजकुमार से अत्यन्त स्नेह था। उसने सोचा-"मैं भविष्य के लिए एक ऐसे रसायन का निर्माण करवाऊंगा, जिससे मेरे पुत्र को कभी रोग न हो।" राजा ने सारे वैद्यों को बुलवाया और कहा कि मेरे पुत्र की इस भांति चिकित्सा करो, जिससे वह नीरोग रहे। वैद्यों ने स्वीकृति दी। राजा ने पूछा-'तुम्हारी औषधि की क्या विशेषता है?' एक वैद्य बोला-'मेरी औषध की यह विशेषता है कि यदि रोग होगा तो वह उपशांत हो जायेगा, यदि रोग नहीं होगा तो वह जीवन का नाश कर देगा।' दूसरा वैद्य बोला- 'मेरी औषधि रोग को उपशान्त करेगी, यदि रोग नही है तो किसी प्रकार का कोई अच्छा या बुरा असर नहीं होगा।' तीसरा वैद्य बोला—'यदि रोग होगा तो मेरी औषधि उसे उपशान्त कर देगी। यदि रोग नहीं होगा तो वह औषधि वर्ण, रूप, यौवन और लावण्य में परिणत हो जाएगी, उससे भविष्य में कोई रोग उत्पन्न नहीं होगा।' यह सुनकर राजा ने तीसरे वैद्य से चिकित्सा करवाई। प्रतिक्रमण तीसरे रसायन के समान है, जो दोष होने पर उसका छेदन कर देता है तथा दोष न होने पर भविष्य की सुरक्षा कर देता है। 56. पद्मावती की दीक्षा चंपानगरी में दधिवाहन नामक राजा था। चेटक की पुत्री पद्मावती उसकी पत्नी थी। जब वह गर्भवती हुई तब उसके मन में दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं राजा के कपड़े पहनकर उद्यान, कानन आदि में विहरण करूं। दोहद पूरा न होने से उसका शरीर कृश होने लगा। राजा ने कृश-काय होने का कारण पूछा। रानी ने राजा को दोहद की बात बताई। यह सुनकर राजा और रानी जय नामक हाथी पर आरूढ़ हुए। राजा ने रानी के सिर पर छत्र धारण किया। वे दोनों उद्यान में गए। वर्षाऋतु होने के कारण मिट्टी की गंध से हाथी वन की ओर दौड़ने लगा। राजकीय लोग उस हाथी को रोकने में समर्थ नहीं हो सके। हाथी राजा और रानी दोनों को लेकर अटवी में प्रविष्ट हो गया। राजा ने एक वटवृक्ष को देखकर रानी से कहा—'जब हाथी इस वटवृक्ष के नीचे से गुजरे, तब तुम इस वटवृक्ष की शाखा को पकड़ लेना।' रानी पद्मावती ने राजा की बात सुनी पर वह वृक्ष की शाखा को पकड़ने में असमर्थ रही। राजा दक्ष था अतः उसने तुरन्त शाखा पकड़ ली। 1. जीभा 1951-58, बृभा 798-802 टी पृ. 251, 252 / 2, जीभा 2054-57 बृभा 6428-30 टी पृ. 1693, आवहाटी 2 पृ.५३।