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________________ कथाएं : परि-२ 609 कृश होने लगा। चाणक्य ने उनसे पूछा-'आपका शरीर दुर्बल क्यों दिखाई दे रहा है?' राजा चन्द्रगुप्त ने कहा—'परिपूर्ण आहार की प्राप्ति न होने से।' तब चाणक्य ने चिन्तन किया-'इतना आहार परोसने पर भी आहार की कमी कैसे हो सकती है? ऐसा लगता है कि निश्चित ही कोई अञ्जनसिद्ध व्यक्ति राजा के साथ भोजन करता है।' तब उसने अञ्जनसिद्ध को पकड़ने के लिए भोजनमण्डप में अत्यन्त सूक्ष्म इष्टकचूर्ण विकीर्ण कर दिया। चाणक्य ने चूर्ण पर मनुष्य के पदचिह्नों को अंकित देखा। चाणक्य को निश्चय हो गया कि दो अञ्जनसिद्ध व्यक्ति यहां आते हैं। चाणक्य ने द्वार को ढककर भोजनमण्डप में चारों ओर धूम कर दिया। धूम से बाधित नयनों से आंसू बहने के साथ अञ्जन भी साफ हो गया। अञ्जन का प्रभाव समाप्त होने पर दोनों क्षुल्लक प्रकट हो गए। चन्द्रगुप्त ने जुगुप्सा के साथ कहा-'अहो! इनके उच्छिष्ट भोजन करने से मैं इनके द्वारा दूषित कर दिया गया।' चाणक्य ने शासन तथा प्रवचन की अवहेलेना न हो इसलिए एक समाधान खोजा। उसने राजा को कहा—'राजन् ! तुम धन्य हो। इन बालब्रह्मचारी यतियों ने तुमको पवित्र कर दिया है लेकिन तुम्हारे उच्छिष्ट भोजन से ये अपवित्र हो गए हैं। चाणक्य ने क्षुल्लकद्वय को वंदना करके भेज दिया। रात्रि में चाणक्य आचार्य के पास गया और आचार्य को उपालम्भ देते हए कहा 'तम्हारे दोनों क्षुल्लक प्रवचन की अप्रभावना कर रहे हैं।' तब आचार्य ने चाणक्य को उपालम्भ देते हुए कहा—'इसके लिए तुम ही अपराधी हो क्योंकि श्रावक होते हुए भी तुम क्षुल्लकों के जीवन-निर्वाह की चिन्ता नहीं करते हो। इस दुर्भिक्ष काल में साधु का जीवन भलीभांति कैसे चलता है, क्या तुमने इसके बारे में कभी सोचा?' 'भगवन्! आपका कथन सत्य है' ऐसा कहते हुए चाणक्य उनके पैरों में गिर पड़ा और क्षमायाचना की। इसके बाद चाणक्य ने सकल संघ की भिक्षा हेतु यथायोग्य चिन्ता की। 50. योग-प्रयोग : कुलपति एवं आर्य समित कथानक ___.. अचलपुर नामक नगर के पास कृष्णा और वेन्ना नामक दो नदियां थीं। दोनों नदियों के बीच ब्रह्म नामक द्वीप था। वहां पांच सौ तापस के साथ देवशर्मा नामक कुलपति निवास करता था। वह संक्रांति आदि पर्व दिनों में अपने तीर्थ की प्रभावना के लिए सब तापसों के साथ पाद-लेप करके कृष्णा नदी को पैरों से पार करके अचलपुर जाता था। लोग उसके इस अतिशय को देखकर विस्मित हो जाते तथा विशेष रूप से भोजन आदि से सत्कार करते थे। लोग साधुओं की निंदा करते हुए श्रावकों को कहते थे –'तुम लोगों के पास ऐसी शक्ति नहीं हो सकती।' श्रावकों ने यह बात वज्रस्वामी के मामा आचार्य समित को बताई। उन्होंने चिन्तन करके श्रावकों से कहा—'यह कुलपति मायापूर्वक पादलेप करके नदी पार करता है, तप-शक्ति के प्रभाव से नहीं। यदि गर्म जल से इसके पैर धो दिए जाएं तो वह नदी पार नहीं कर सकेगा।' तब श्रावकों ने उसकी माया को प्रकट करने के लिए सपरिवार कुलपति को भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन१. जीभा 1450-55, पिनि 230 पिभा 35-37, मटी प. 143, निभा 4463-65, चू पृ. 423, 424 / 2. निशीथ चूर्णि (भा. 3 पृ. 425) तथा जीभा 1460 में आभीर जनपद का उल्लेख मिलता है। ऐसा संभव लगता है कि आभीर जनपद में अचलपुर नामक नगर था।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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