________________ 580 जीतकल्प सभाष्य व्यन्तर देव ने अनशन में स्थित कुमार कालवैशिक मुनि को देखा तो तीव्र वैर उत्पन्न हो गया। उसने वैक्रिय शक्ति से सियार के बच्चों की विकुर्वणा की। अपने बच्चों सहित वह सियार रूप देव 'खीखी' शब्द करके मुनि के शरीर को नोंचने लगा। इधर राजा ने जब मुनि के भक्त-प्रत्याख्यान की बात सुनी तो राजपुरुषों को रक्षा के लिए भेज दिया। राजपुरुष वहां रहते तो देव चला जाता। जब आवश्यक कार्य के लिए वे जाते तो 'खी-खी' शब्द करता हुआ वह देव रूप सियार मुनि के शरीर को खाने लगता। इस प्रकार मुनि ने समता-पूर्वक अनशन को पूर्ण किया। 11. बांसों के झुरमुट की वेदना एक मुनि प्रायोपगमन अनशन में स्थित था। उसे अनशन में स्थित देखकर कुछ प्रत्यनीक व्यक्तियों ने उसे उठाकर बांसों के झुरमुट में डाल दिया। कुछ समय बाद बांस फूटने लगे। बढ़ते हुए बांसों ने मुनि के शरीर को बींध डाला और ऊपर आकाश में उछाल दिया फिर भी मुनि ने उस वेदना को समभाव से सहन किया। 12. अवन्ति-सुकुमाल एक बार आचार्य सुहस्ति पाटलिपुत्र के उद्यान में ठहरे। उन्होंने संतों से कहा कि वसति की मार्गणा करो। वहां एक साधुओं का सिंघाड़ा सुभद्रा सेठानी के यहां भिक्षा के लिए गया। सुभद्रा ने पूछा"किस आचार्य का आगमन हुआ है?" साधुओं ने कहा कि आचार्य सुहस्ति का आगमन हुआ है अतः हम वसति की याचना कर रहे हैं। सुभद्रा ने अपनी यानशाला दिखाई। साधु वहां ठहर गए। एक बार आचार्य प्रदोषकाल में नलिनीगुल्म अध्ययन का परावर्तन कर रहे थे। सुभद्रा का पुत्र अवन्ति-सुकुमाल सप्तभौम प्रासाद में अपनी बत्तीस पत्नियों के साथ क्रीड़ा कर रहा था। जागृत होने पर उसने श्रुत को सुना। अवन्तिसुकुमाल ने सोचा कि यह नाटक तो नहीं है। वह सप्तभौम प्रासाद से उतरते हुए नीचे आया। वह अपने प्रासाद से बाहर निकला। उसके मन में विकल्प उठा कि ऐसा वर्णन मैंने कहीं देखा है। सोचतेसोचते उसको जाति स्मृति ज्ञान उत्पन्न हो गया। वह आचार्य के पास आया। उसने आचार्य से कहा-"मैं अवन्ति-सुकुमाल नलिनीगुल्म विमान में देव था।" उत्सकुता के कारण उसने आचार्य से कहा-"मैं प्रव्रजित होना चाहता हूं लेकिन श्रामण्य-पर्याय का पालन करने में असमर्थ हूं अतः मैं प्रव्रजित होकर इंगिनीमरण अनशन स्वीकार कर लूंगा।" आचार्य ने कहा-'अपनी पत्नियों को भी गृहस्थावस्था से मुक्त करो।' उसने पत्नियों से पूछा लेकिन कोई भी पत्नी तैयार नहीं हुई। अवन्ति-सुकुमाल ने स्वयं ही लोच कर लिया। यह स्वयं ही लिंग ग्रहण न कर ले इसलिए आचार्य ने उसको मुनि वेश धारण करवाया। श्मशान में एक विशेष स्थान पर उसने भक्तप्रत्याख्यान कर लिया। अवन्ति-सुकुमाल के पैरों में लगे रुधिर के गंध से एक लोमड़ी वहां आई। लोमड़ी एक पैर को खाने लगी तथा दूसरा पैर उसके बच्चे खाने लगे। रात्रि के 1. जीभा 534, उनि 116, शांटी प. 120, 121 / 2. जीभा 535, व्यभा 4424 /