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________________ अनुवाद-जी-१०३ 527 2604. काल आने पर विद्वान् व्यक्ति भले विद्या के साथ मर जाए पर अपात्र को वाचना' न दे तथा पात्र की अवमानना न करे। 2605. आपवादिक स्थिति में मार्ग आदि कारण उपस्थित होने पर आचार्य अपात्र को भी वाचना दे। यह सोचकर कि यह वैयावृत्त्य आदि के द्वारा हमको बहुत तृप्त करेगा। 2606. अल्पअक्षर और महान् अर्थ वाला यह पांचवां व्यवहार-जीतकल्प संक्षेप में वर्णित है। 2607. इस जीतकल्प को उदधि सदृश बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ' जैसे श्रुतरत्न का बिन्दु तथा नवनीत के समान सारभूत जानना चाहिए। 2608. जो आचार्य बृहत्कल्प आदि तीनों के सूत्रार्थ को निपुणता से जानता है, वही शिष्य-प्रशिष्यों को इसकी वाचना दे सकता है, दूसरा नहीं। 1. बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख मिलता है कि परोक्षज्ञानी गुरु सूत्र और अर्थ की वाचना देते समय शिष्य के अभिप्राय को जानकर अपात्र को वाचना नहीं देते क्योंकि अपात्र को वाचना देने से श्रुत की आशातना होती है और शिष्यों का विनाश होता है। बृहत्कल्प सूत्र में तीन व्यक्तियों को वाचना देने के अयोग्य माना है-१. अविनीत 2. रसलोलुप 3. कलह को उपशान्त नहीं करने वाला। भाष्यकार उपमा द्वारा स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जैसे ग्वाला गायों के आगे आकर जब पताका दिखाता है तो गायों की गति में तीव्रता आ जाती है, वैसे ही अपात्र को श्रुत देने से वह उसके अहंकार को बढ़ाता है। पात्र को वाचना न देने से आचार्य का अपयश, सूत्रार्थ का विच्छेद तथा प्रवचन की हानि होती है तथा लोगों में यह चर्चा होती है कि ये मात्सर्य और पक्षपात से युक्त है। १.बृभा 214 टी पृ.६८। 2. बृभा 5202 टी पृ.१३८२, 1383 / ३.निभा 6233 ; अयसो पवयणहाणी,सुत्तत्थाणं तहेव वोच्छेदो। पत्तं तु अवाएंते, मच्छरिवाते सपक्ख वा।। 2. ग्रंथकार का तात्पर्य यहां तीनों ग्रंथों के भाष्यों से होना चाहिए।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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