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________________ अनुवाद-जी-३५ 427 * अचित्त पर मिश्र निक्षिप्त। * मिश्र पर अचित्त निक्षिप्त। * अचित्त पर अचित्त निक्षिप्त। 1517. इन चतुर्भगियों के अनेकविध संयोग जानने चाहिए। पृथ्वीकाय आदि छहों कायों में भी स्वस्थान और परस्थान भेद जानने चाहिए। 1518, 1519. पृथ्वीकाय में स्वस्थान की चतुर्भंगी इस प्रकार है * सचित्त पृथ्वी पर सचित्त पृथ्वी का निक्षेप। * सचित्त पृथ्वी पर अचित्त पृथ्वी का निक्षेप। * अचित्त पृथ्वी पर सचित्त पृथ्वी का निक्षेप। * अचित्त पृथ्वी पर अचित्त पृथ्वी का निक्षेप। परस्थान में अप्काय, तेजस्काय आदि पांच अन्य का निक्षेप जानना चाहिए। 1520, 1521. सचित्त अप्काय पर सचित्त पृथ्वीकाय का निक्षेप, अचित्त अप्काय पर सचित्त पृथ्वी का निक्षेप, सचित्त अप्काय पर अचित्त पृथ्वी का निक्षेप, अचित्त अप्काय पर अचित्त पृथ्वी का निक्षेप। इसी प्रकार तेजस्काय आदि परस्थान पर निक्षिप्त पृथ्वीकाय संयोगों की चतुर्भंगियां जाननी चाहिए। 1522. इसी प्रकार अप्, तेजस, वायु, वनस्पति और त्रस-प्रत्येक की संयोग जन्य छह चतुर्भंगियां जाननी चाहिए। 1523. सचित्त के साथ सचित्त के छत्तीस संयोग होते हैं। मिश्र के साथ अचित्त के भी इतने ही संयोग जानने चाहिए। .1524. अचित्त के साथ मिश्र के भी इतने ही संयोग होते हैं। छत्तीस का त्रिक मिलाने से सारे एक सौ आठ भंग होते हैं। 1525. अथवा सचित्त पर मिश्र, सचित्तमिश्र पर अचित्त, अचित्त पर सचित्तमिश्र तथा अचित्त पर अचित्त –इस चतुर्भंगी में प्रथम तीन भंगों में भक्तपान ग्रहण करने की बात ही नहीं होती, चतुर्थ भंग में भक्तपान ग्रहण करना कल्प्य है। 1526. सचित्त पृथ्वी आदि काय पर जो अचित्त द्रव्य को रखा जाता है, उसकी मार्गणा दो प्रकार से होती है-अनंतर और परम्पर। 1527. सचित्त पृथ्वी पर अवगाहिम-पक्वान्न आदि निक्षिप्त होता है, वह अनंतर निक्षिप्त कहलाता है। १.पृथ्वीकाय से संबंधित छह प्रकार के निक्षेप इस प्रकार हैं-१. पृथ्वीकाय का पृथ्वीकाय पर 2. पृथ्वीकाय का अप्काय पर 3. पृथ्वीकाय का तेजस्काय पर 4. पृथ्वीकाय का वायुकाय पर 5. पृथ्वीकाय का वनस्पतिकाय पर 6. पृथ्वीकाय का त्रसकाय पर। इसी प्रकार अप्काय आदि के भी छह-छह भेद होते हैं। १.पिनिमटी प.१५१।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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