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________________ 336 जीतकल्प सभाष्य करते हैं कि तुम्हारी आलोचना नक्षत्र -मास प्रायश्चित्त विषयक है अतः शुक्ल' अर्थात् उद्घात मास में दश दिन का तप करना चाहिए। 641. प्रथम दर्प लक्षण वाले कार्य सम्बन्धी दशविध आलोचना को सुनकर आलोचनाचार्य यह निर्धारित करते हैं कि तुम्हारी आलोचना नक्षत्र अर्थात् मास प्रायश्चित्त विषयक है अत: उद्घातमास के अन्तर्गत पाक्षिक तप करना चाहिए। 642. प्रथम दर्प लक्षण वाले कार्य सम्बन्धी दशविध आलोचना को सुनकर आलोचनाचार्य यह निर्धारित करते हैं कि तुम्हारी आलोचना नक्षत्र-मास प्रायश्चित्त विषयक है अत: उद्घातमास के अन्तर्गत 20 दिन का तप करना चाहिए। 643. प्रथम दर्प लक्षण वाले कार्य सम्बन्धी दशविध आलोचना को सुनकर आलोचनाचार्य यह निर्धारित करते हैं कि तुम्हारी आलोचना नक्षत्र-मास प्रायश्चित्त विषयक है अतः उद्घातमास के अन्तर्गत 25 दिन का तप करना चाहिए। 644. इस प्रकार उद्घात' की गाथाओं की भांति अनुरात-लघुमास की गाथाओं को जानना चाहिए। अंतर केवल इतना है कि शुक्ल पंचक के स्थान पर कृष्ण पंचक आदि आलापक वक्तव्य हैं। 645. प्रथम दर्प लक्षण वाले कार्य सम्बन्धी दशविध प्रतिसेवना की आलोचना को सुनकर आचार्य प्रायश्चित्त स्वरूप कहे कि तुम्हें नक्षत्र-मास जितने तप का प्रायश्चित्त है। यदि तीनों षट्कों में विराधना हुई हो तो शुक्ल अर्थात् लघु चातुर्मासिक तप करना चाहिए। 646. प्रथम कार्य अर्थात् दर्प से हुई दशविध प्रतिसेवना की आलोचना सुनकर आलोचनाचार्य प्रायश्चित्त स्वरूप यह निर्धारित करते हैं कि तुम्हें नक्षत्र-मास जितने तप का प्रायश्चित्त है। यदि तीनों षट्कों में विराधना हुई है तो कृष्ण अर्थात् चार गुरुमास का तप करना चाहिए। 647. प्रथम कार्य अर्थात् दर्प से हुई दशविध प्रतिसेवना को सुनकर आलोचनाचार्य प्रायश्चित्त स्वरूप यह निर्धारित करते हैं कि तुम्हें नक्षत्र-मास का प्रायश्चित्त है / यदि तीनों षट्कों में विराधना हुई है तो तुम्हें छह लघुमास का तप करना चाहिए। 648. प्रथम कार्य अर्थात् दर्प से हुई दशविध प्रतिसेवना की आलोचना को सुनकर आचार्य प्रायश्चित्त स्वरूप कहे कि तुम्हें नक्षत्र अर्थात् मास का प्रायश्चित्त है। यदि तीनों षट्कों में विराधना हुई हो तो तुम्हें छह गुरुमास का प्रायश्चित्त करना चाहिए। १.बृहत्कल्पभाष्य की टीका में लघुक, उद्घात और शुक्ल को एकार्थक माना है। 1. बृभा 299 टी पृ. 91 ; लघुकमिति वा उद्घातितमिति वा शुक्लमिति वा लघुकस्य नामानि। 2. उद्घात का अर्थ लघुमास तथा अनुद्घात का अर्थ गुरुमास है। कृष्णमास से अनुद्घात तथा शुक्ल मास से उद्घात का सम्बन्ध है। उत्तरगुण की विराधना में शुक्लमास तथा मूलगुण की विराधना में कृष्णमास की प्राप्ति होती है। 3. बृभा की टीका में गुरुक, अनुद्घात तथा कालक (कृष्ण) को एकार्थक माना है। १.बृभा 299 टी पृ.९१ ; गुरुकमिति वा अनुद्घातीति वा कालकमिति वा गुरुकस्य नामानि
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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