________________ अनुवाद-जी-१ 277 65. अप्रतिपाती' अवधिज्ञान क्या है? जो अलोक के एक आकाश प्रदेश यावत् उससे अधिक देखने की क्षमता रखता है, वह अप्रतिपाती अवधिज्ञान है। 66. जो अलोक में लोक-प्रमाण असंख्येय खंडों को जानता-देखता है (देखने की क्षमता रखता है), वह क्षेत्रतः अप्रतिपाती अवधिज्ञान है। 67. यह अप्रतिपाती अवधिज्ञान संक्षिप्त में कहा गया। वह संक्षेप में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से चार प्रकार का होता है, उसे मैं कहूंगा। 68. द्रव्य से अवधिज्ञान का विषय रूपी द्रव्य है। क्षेत्र से जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग को जानता है, उत्कृष्ट क्षेत्र-प्रमाण इस प्रकार कहूंगा। 69. जो अलोक में लोक प्रमाण असंख्येय खंडों को जानता-देखता है (देखने की क्षमता रखता है), वह क्षेत्रतः अप्रतिपाती अवधिज्ञान है। 70. काल से अवधिज्ञानी जघन्य रूप से नियमतः आवलिका के असंख्यातवें भाग को जानता-देखता है। 71. उत्कृष्टतः वह (असंख्य) उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण अतीत और भविष्य के काल को जानतादेखता है। 72. भाव से जो अनंत पर्यायों तथा समस्त पर्यायों के अनंतभाग को जानता-देखता है, वह भावतः अवधिज्ञान कहा गया है। 1. जो ज्ञान उत्पन्न होने के बाद विनष्ट नहीं होता, वह अप्रतिपाती अवधिज्ञान कहलाता है। आचार्य हरिभद्र ने इसको उस निर्मल जात्यमणि से उपमित किया है, जिस पर पुनः मलिनता नहीं जमती। परमावधि और सर्वावधि ज्ञान नियमत: अप्रतिपाती होते हैं। १.नंदीहाटी पृ. २३;क्षार-मृत्पुटपाकाद्यापाद्यमानजात्यमणिकिरणनिकरवदित्यभिप्रायः। 2. आवश्यक नियुक्ति और विशेषावश्यक भाष्य में परमावधि का विस्तृत वर्णन है लेकिन जीतकल्पभाष्य में इसका .. उल्लेख नहीं है। यह शोध का विषय है कि उन्होंने यहां इसका वर्णन क्यों नहीं किया? परमावधि के विस्तार हेतु देखें श्रीभिक्षु भा. 1 पृ.५५, 56 / 3. द्रव्य से अवधिज्ञानी जघन्यतः अनंत रूपी द्रव्यों को जानता-देखता है तथा उत्कृष्टतः सभी रूपी द्रव्यों को जानता-देखता है। इस विषय में आवश्यक नियुक्ति में विस्तार से वर्णन मिलता है। 1. द्र. आवनि 36-42 / 4. इस गाथा में अवधिज्ञान के विषय-निरूपण के सामर्थ्य का वर्णन है। इसका तात्पर्य यह है कि अप्रतिपाती __ अवधिज्ञान लोकाकाश में स्थित पुद्गल-पर्यायों को और अधिक सूक्ष्मता से जानता है। 5. अवधिज्ञानी भाव की दृष्टि से जघन्य और उत्कृष्ट रूप से अनंत भावों को जानता है, यह सापेक्ष कथन है। टीकाकार हरिभद्र ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि आधारभूत ज्ञेय द्रव्य अनंत हैं अत: इस कारण वह अनंत पर्यायों को जानता है लेकिन प्रतिद्रव्य की अनंत पर्यायों को नहीं जान सकता। सब पदार्थों की सम्पूर्ण पर्यायों को केवलज्ञान द्वारा ही जाना जा सकता है अत: अवधिज्ञानी सब भावों के अनंतवें भाग को जानता है। मलयगिरि के अनुसार अवधिज्ञानी प्रतिद्रव्य की संख्येय और असंख्येय पर्यायों को जानता है। 1. नंदीहाटी पृ.३०; भावतोऽवधिज्ञानी जघन्येनानन्तानन्तान् भावान् पर्यायान् आधारद्रव्यानन्तत्वाद् न तु प्रतिद्रव्यमिति। / २.नंदीमटी पृ. 98 प्रतिद्रव्यं संख्येयानामसंख्येयानाम् वा पर्यायाणां दर्शनात्।