________________ 262 जीतकल्प सभाष्य . 2586. अहव अगीतणिमित्तं, अप्परिणामे' य तस्स ववहारं / नवविह पत्थारेत्ता, गेण्हसु एतं लहुसभत्ते / / 2587. हत्थं तु भमाडेतुं, दरिसेतुं णवविहं पि ववहारं / ताहे भण्णति एवं, सो गेहसु लहुसगं एतं // अणवटुप्पो तवसा, तवपारंची य दो वि वोच्छिण्णा। . चोद्दसपुव्वधरम्मी, धरेंति सेसा तु जा तित्थं // 102 // 2588. पारंचिय अणवट्ठा, तवसा आरेण भद्दबाहूओ। वोच्छिण्णा दो तेसिं, सेसा तु धरेंति जा .तित्थं // 2589. लिंगेण खेत्त काले, धरेंति पारंचियाऽणवट्ठा. जे / लिंगेणं अणुसज्जति, दुव्वे भावे य जा तित्थं // इति' एस जीतकप्पो, समासतो सुविहिताणुकंपाए। कहितो देयोऽयं पुण, पत्तेसु परिच्छितगुणेसु॥१०३॥ 2590. इति एस अणंतरतो, उद्दिवो होति जीतकप्पो तु। जीतं आयरणिज्ज, कप्पो पुण छव्विधो इणमो॥ 2591. आजीवियधरणाओ, व अहव जीतं इमं मुणेतव्वं / जीतस्स तस्स कप्पो, एत्थं जो जीतकप्पो सो॥ 2592. सामत्थे वण्णणाए य, छेदणे करणे तहा। ओवम्मे अहिवासे य, कप्पसद्दो तु वण्णितो // 2593. छेदणे वण्णणे चेव, कप्पसद्दो इहं कतो। जीतस्स वण्णणा जीतकप्पों तह छेदणं चेव // 2594. एतस्स जीतकप्पस्स, समासो इति इहं मुणेतव्वो। संखेवो य समासो, ओहो त्ति व होति एगट्ठा // 2595. सोभणविही तु जेसिं, सोभणविहिता व सुविहिता ते तु। तेसिं अणुकंपाए, कहितो देयो य पत्तेसु॥ 1. अपरि (ला)। 2. जो (ला)। 3. इय (ला)। 4. पुणो (ला)। 5. 'तगुणम्मि (ला)। 6. यचर (ला)।