________________ 260 जीतकल्प सभाष्य 2564. सो य समत्थो होज्जा, संपाडेतुमिह तस्स कज्जस्स। खीरादिलद्धिजुत्तो, विज्जादिगअतिसएहिं च॥ 2565. जाणंता माहप्पं, सयमेव 'गुरू वदंति तं जोगं"। अत्थि मम एत्थ विसओ, अजाणए 'ते व सो२ बेंति / / 2566. अच्छउ महाणुभावो', जहासुहं गुणसयागरो संघो। गुरुगं पि इमं कज्जं, मं पप्प भविस्सते लहुगं॥ 2567. अभिधाणहेतुकुसलो, बहूसु णीराइतो विदुसभासु। गंतूण रायभवणं, 'भणाइमं रायदारिद्रु" // 2568. पडिहाररूवी! भण रायरूवी, तमिच्छते' संजतरूवि दटुं। णिवेदइत्ताण स पत्थिवस्स, जहिं णिवो तत्थ तगं पवेसे॥ 2569. तं पूयइत्ताण सुहासणत्थं, पुच्छिंसु राया गतकोउहल्लो। पण्हे उगले असुए कदाई', स यावि आइक्खति पत्थिवस्स // 2570. जारिसगा 'सक्कादीण आयरक्खा'११ ण - तारिसो एसो। तुह राय! दारपालो, तं पि य चक्कीण पडिरूवी॥ 2571. अट्ठारससीलसहस्सधारगा होति साधुणो' अहयं। तं१२ पति पडिरूवित्तं, अतियारणिसेवणापत्तो॥ 2572. णिज्जूढो मि परीसर!, खेते वि जतीण अच्छितुं ण लभे। अतियारस्स विसोधिं, पकरेमि पमादमूलस्स" // 2573. 'धम्मकहा आउट्टाण पुच्छणं'१५ दीवणा य कज्जस्स। 'किं पुण हवेज्ज कज्जं?, इमेहिँ होज्जाहि एगतरं'१६ // 1. भणंति एत्थ तं जोग्गो (बृ 5044, व्य 1217) / 2. सो व ते (बृ, व्य)। 3. भागो (बृ५०४५, व्य 1218) / 4. अणिरा' (मु)। 5. भणाति तं रायदारटुं (बृ५०४६), भणाति तं रायदारिद्वं (व्य 1219) / 6. रूविं (बृ५०४७, व्य 1220) / 7. तं इच्छते (व्य)। 8. ता य (बृ, व्य)। 9. कयाइ (ब)। 10. बृ 5048, व्य 1221 / / 11. आयरक्खा सक्कादीणं (बृ५०४९, व्य 1222) / 12. ते (ब, ला)। 13. अच्छितं (ता, ब, ला)। 14. व्य 1224, बृ५०५१। 15. कहणाऽऽउट्टण आगमणपुच्छणं (बृ५०५२, व्य 1225) / १६.वीसज्जियंति य मए, हासुस्सलितो भणति राया (ब, व्य)।