________________ 244 - जीतकल्प सभाष्य 2408. णेतूण अण्णखेत्तं, तस्स उवट्ठावणा तु कातव्वा! तहिँ णोवट्ठा खेत्ते, किं कारण? भण्णती सुणसु॥ 2409. पुव्वब्भासा भासेज्ज, किंचि गोरव सिणेह भयतो वा। ण सहति परिस्सहं पि य, णाणे कंडुव्व कच्छुल्लो // 2410. तेण तु तहियं थाणे, ण हु देती तस्स भावलिंग तु। देज्जा व कारणम्मी, असिवोमादीसु तप्पिहिति // 2411. ण य मुच्चति असहाओ, तहियं पुट्ठो तु भणति वीसरियं। अहवा वि उत्तिमढे, देज्जाही लिंग तत्थेव॥ 2412. एवं ता ओसण्णे, गिहत्थे पुण दव्वभावलिंगाई। दोण्णि वि ‘ण वि" दिज्जंती, दिज्जेज्ज व उत्तिमट्ठम्मि॥ 2413. एवं अत्थादाणे, जे पुण सेसा हवंति. अणवट्ठा। साहम्मि-अण्णधम्मियतेणादी ते उ भयणिज्जा / / 2414. का पुण भयणा एत्थं?, आहारे उवहितेण अच्चित्ते। लहुगो लहुगा गुरुगा, अणवठ्ठप्पो व आदेसा॥ 2415. कह पुण आदेसेणं, अणवट्ठो होतिमं 'णिसामेह / अणुवरमंतो कीरति, अहवा उस्सण्णदोसो तु॥ 2416. अहवा भिक्खू पावति, एतेसु पदेसु तिविध पच्छित्तं / णवमं पुण बोद्धव्वं, अभिसेगे सूरिणो दसमं॥ 2417. तुल्लम्मि वि अवराधे, तुल्लमतुल्लं च दिज्जते दोण्हं / पारंचिए वि नवमं, 'अभिसेग गुरुस्स पारंची'॥ 2418. अहवा अभिक्खसेवी, अणुवरमं पावती गणी नवमं। पावंति मूलमेव तु, अभिक्खपडिसेविणो सेसा // 1. 2406-08 तक की तीन गाथाओं के स्थान पर बृ 3. ता और पा प्रति में गाथा का पूर्वार्द्ध नहीं है। (5118) में निम्न गाथा है 4.4 (ला)। एयारिसो उ पुरिसो, अणवटुप्पो उ सो सदेसम्मि। 5.4 (पा)। णेतूण अण्णदेसं, चिट्ठउवट्ठावणा तस्स॥ 6. गणिस्स गुरुणो उ तं चेव (बृ 5126) / २.बृ 5119, इस गाथा का पा प्रति में केवल 'पुव्वब्भासा' 7. सेवणा (ता, ला)। इतना ही संकेत मात्र है। ८.बृ५१२७।