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________________ 238 जीतकल्प सभाष्य 2344. आणादऽणंतसंसारियत्त बोहीय दुल्लभत्तं च। साहम्मियतेण्णम्मी', पमत्तछलणाऽधिकरणं च // 2345. 'बितियपदं वोच्छेदे", पुव्वगते कालियाणुजोगे य। 'एतेहिं कारणेहिं", कप्पति सेहाऽवहारो तु॥ 2346. एवं तु सो अवहितो, जाहे जातो सयं तु पावयणी। कारणजाते य जया, होज्जाही अवहितो तेणं // 2347. सो तं चिय धरति गणं, कालगत गुरुम्मि तं विहारेंते। जावेक्को णिप्फण्णो, ताहे से अप्पणो इच्छा॥ 2348. अह हरिते णिक्कारण, ताहे पुरिमाण चेव सो जाति। अह अब्भुज्जतमरणं, पडिवण्णो गुरुविहारं वा॥ 2349. अण्णम्मि अविजंते, आयरियपदारुहे तमेव गणं। धारेति जाव अण्णो, णिम्मातो तम्मि गच्छम्मि॥ 2350. सच्चित्ततेण्णमेतं, साहम्मीणं तु एवमक्खातं / आभवणं दोसा या, परधम्मियतेण्ण वोच्छामि / 2351. परधम्मिया वि दुविधा, लिंगपविट्ठा तहा गिहत्था य। तेसिं 'तिविधं तेण्णं", आहारे उवधि सच्चित्ते // 2352. भिक्खूमादी संखडि, तं लिंग काउ भुंजते लुद्धो। आभोगम्मि उ लहुगा, गुरुगा उद्धंसणे . होति // 2353. कूरणिमित्तं चेव उ, अजियंता एतें एत्थ पव्वइता। अविदिण्णदाणगा खलु, पवयणहीला दुरप्प ति॥ 2354. गिहवासे वि वरागा', धुवं खु एतें अदिट्ठकल्लाणा। गलओ णवर ण बलिओ, एतेसिं सत्थुणा चेव // 1. म्मिं (बृ 5079) / 2. णाऊण य वोच्छेदं (बृ 5083) / 3. अज्जाकारणजाते (ब)। 4. कप्पेति (पा)। ५.बृ (5081) और नि (2707) में गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है निक्कारणे य गहितो, वच्चति ताहे पुरिल्लाणं। 6. एणगेयं (ब)। 7. तिण्णं तिविहं (बृ 5088) / 8. ति (ता, ला)। 9. वरागो (ला)। 10. णवरि (बृ 5090) /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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